संयुक्त अरब इमारात ने अपनी क्षेत्रीय नीतियों में परिवर्तन किया है। यूएई ने यमन से बाहर निकलने के साथ ही तनाव दूर करने के उद्देश्य से इस्लामी गणतंत्र ईरान के साथ वार्ता का रुख़ अपनाया है।
पश्चिमी एशिया के परिवर्तनों में संयुक्त अरब इमारात की भूमिका रही है। हालिया एक दशक के दौरान क्षेत्र में तनाव फैलाने वालों में से एक देश वह भी रहा है। सन 2001 से यूएई, क्षेत्र के बारे में सऊदी अरब की नीतियों का अनुसरण करता आ रहा है।
पिछले कुछ वर्षों के दौरान यूएई ने क्षेत्र में तनाव फैलाने वाले जो काम किये उनमे से कुछ इस प्रकार हैं। सीरिया संकट में हस्तक्षेप, यमन के विरुद्ध यु्द्ध में सक्रिय भूमिका, क़तर से कूटनीतिक संबन्ध विच्छेद करना और ईरान पर दबाव बनाने के उद्देश्य से अमरीका और सऊदी अरब की नीतियों का अंधा अनुसरण आदि।
इन बातों के बावजूद यूएई ने पिछले एक महीने के दौरान यमन युद्ध और ईरान के बारे में अपनी नीतियों को बदलना आरंभ कर दिया है। संयुक्त अरब इमारात ने यमन से अपने सैनिकों को वापस बुलाने की घोषणा के साथ ही तनाव दूर करने के लिए ईरान के साथ वार्ता की बात कही है।
यहां पर सवाल यह पैदा होता है कि ईरान तथा यमन के बारे में यूएई के दृष्टिकोण में बदलाव का क्या कारण है। इसका पहला कारण यह है कि यूएई को अब यह बात समझ में आ गई है कि यमन युद्ध में सऊदी गठबंधन पूरी तरह से विफल रहा है और दूसरे यह कि सऊदी अरब की ईरान विरोधी नीतियों का अनुसरण करने में संयुक्त अरब इमारात के हितों को लाभ नहीं पहुंच रहा है।
पार्स टुडे डॉट कॉम के अनुसार, यूएई का यह मानना है कि वर्तमान परिस्थितियों में यमन युद्ध में सहकारिता करने से देश के भीतर अशांति में वृद्धि हो सकती है और अशांति के बढ़ने से विदेशी पूंजी निवेश, देश के बाहर जा सकता है।
अरबी भाषा के समाचारपत्र रायुलयौम ने इस बारे में लिखा है कि यूएई ने ईरान के साथ शत्रुता के ख़तरों और यमन युद्ध के बढ़ने को समझते हुए ईरान की ओर क़दम बढ़ाया है ताकि आंतरिक समस्याओं से मुक्ति पा सके।
संयुक्त अरब इमारात के अधिकारियों ने ईरान से अनुरोध किया है कि वह यमन मामले में मध्यस्थता करे। वास्तव में यूएई को ईरान की सैन्य क्षमता का आभास हो चुका है।