उदयपुर जघन्य हत्याकांड: ‘मुस्लिम विमेंस फ़ोरम’ ने कड़ी निंदा की!

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बीते मंगलवार को उदयपुर में किये गए कन्हैयालाल की जघन्य हत्या की “मुस्लिम विमेंस फ़ोरम” घोर निंदा करता है। ये हत्या इसलिए किया गया कि कन्हैयालाल ने नूपुर शर्मा (जिसने पैग़म्बर मोहम्मद साहब पर अभद्र टिप्पणी की थी) के समर्थन में सोशल मीडिया पर एक पोस्ट साझा किया था। हत्यारे मुसलमान हैं। और उनका कहना है कि उन्होंने कन्हैयालाल को उसके गुनाह की सज़ा दी है।


लेकिन उनके इस करतूत को अगर हम क़ुरआन और हदीस की रौशनी में पड़ताल करें या फिर ख़ुद पैग़म्बर साहब की जीवनी का अध्धयन करें तो हम पाते हैं कि हत्यारों का यह क़दम इस्लाम की शिक्षा के ठीक विपरीत है।

इस्लाम कहीं से भी इस तरह की घटना को अंजाम देने की इजाज़त नहीं देता है। हत्यारों का यह क़दम इस्लाम की शिक्षा के विपरीत है।


वैसे तो अनगिनत हवाले दिए जा सकते हैं,लेकिन यहाँ हम पैग़म्बर मोहम्मद (स.) के जीवन से जुड़ी सिर्फ़ दो घटनाओं का ज़िक्र करेंगे जिससे स्पष्ट हो जाएगा कि इस तरह की वारदात के लिए इस्लाम में कोई जगह नहीं है।


पहला वाक़िया उस महिला के बारे में, जो हर रोज़ जब पैग़म्बर उसके घर के रास्ते से होकर गुज़रते थे तो वो हर रोज़ उनके उपर कूड़ा डालती थी। ये रोज़ का मामूल था। पैग़म्बर साहब इसके जवाब में कुछ न बोलते सिर्फ़ मुस्कुरा कर आगे बढ़ जाते। फिर हुआ ये कि वो महिला कई दिनों से कूड़ा नहीं डाला।

पैग़म्बर साहब फ़िक्रमंद हुए और पता करने के लिए उसके घर गए। तो पता चला कि वो बीमार है। पैग़म्बर साहब के इस व्यवहार से वो महिला बहुत शर्मिन्दा हुई। और आगे से उसने ऐसा न करने का फ़ैसला किया।


दूसरी घटना बदर की लड़ाई के वक़्त की है। लड़ाई के बाद जो बहुत से क़ैदी बन कर आये उसमें एक क़ैदी था जिसका नाम सुहैल बिन अमरु था, जो पैग़म्बर मोहम्मद साहब के ख़िलाफ़ उत्तेजनापूर्ण और बेहूदा भाषण के लिए मशहूर था।

पैग़म्बर साहब के कुछ साथियों की राय थी कि सज़ा के तौर पर उसके नीचे के दो दांत उखाड़ दिए जाएँ ताकि वो भविष्य में ऐसी घटिया बयानबाज़ी न कर सके। इसपर पैग़म्बर मोहम्मद (स.) ने असहमति जताते हुए कहा कि ‘ख़ुदा मुझसे क़यामत के दिन नाराज़ होगा।’


इन दो घटनाओं से हम देखते कि पैग़म्बर साहब का अपने कट्टर दुश्मनों के साथ भी कैसा सुलूक था।


क़ानून को हाथ में लेने से अराजक स्थिति उत्पन्न होगी,जो किसी के भी हक़ में नहीं है। नफ़रती ताक़तों के ख़िलाफ़ एकजुट होकर उसका मुंहतोड़ जवाब दिया जाना चाहिए। सत्य और अहिंसा एक राष्ट्र के रूप में हमारा मूलमन्त्र होना चाहिए। “सर्व धर्म सम भाव” के विचार में ही हमारी भलाई है। यही इस्लाम हमें सबक़ देता है।


इसी बात को उर्दू के मशहूर शायर मौलाना अल्ताफ़ हुसैन ‘हाली’ ने अपनी नज़्म ‘हुब्ब-ए-वतन’ (देशप्रेम 1905 ) में यूँ बयान किया है। इसी नज़्म से चंद अश’आर पेश हैं।

तुम अगर चाहते हो मुल्क की ख़ैर
न किसी हम-वतन को समझो ग़ैर
हों मुसलमान इसमें या हिन्दू
बौद्ध मज़हब हो या हो सिख बंधु
सब को मीठी निगाह से देखो
समझो आँखों की पुतलियाँ सब को
मुल्क हैं इत्तिफ़ाक़ से आज़ाद
शहर हैं इत्तिफ़ाक़ से आबाद
क़ौम जब इत्तिफ़ाक़ खो बैठी
अपनी पूँजी से हाथ धो बैठी

(डॉ. सैयदा हमीद प्रेसिडेंट, रेयाज़ अहमद फ़ेलो
मुस्लिम विमेंस फ़ोरम, नई दिल्ली)