संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद के चुनाव में सऊदी अरब अपनी जगह बनाने में नाकाम रहा।
डी डब्ल्यू हिन्दी पर छपी खबर के अनुसार, मानवाधिकार कार्यकर्ताओं ने सऊदी की उम्मीदवारी का विरोध किया था और कहा था कि वह मानवाधिकार रक्षकों और आलोचकों को निशाना बनाता है।
मंगलवार को चीन, रूस और क्यूबा संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद (यूएनएचआरसी) के सदस्य चुने गए। हालांकि मानवाधिकारों के रिकॉर्ड को लेकर कार्यकर्ता समूहों ने इसका विरोध किया था।
सीट जीतने के मुकाबले में सऊदी अरब को हार का सामना करना पड़ा। रूस और क्यूबा निर्विरोध चुने गए लेकिन चीन और सऊदी अरब के बीच कड़ा मुकाबला हुआ और चीन ने सफलता हासिल की।
संयुक्त राष्ट्र महासभा हर साल मानवाधिकार परिषद के एक तिहाई सदस्यों को बदलने के लिए चुनाव कराती है। परिषद के सदस्यों का कार्यकाल तीन साल का होता है, जिन्हें अधिकतम लगातार दो बार चुना जा सकता है।
यूएनएचआरसी के 47 सदस्य देश हैं और उम्मीदवारों को भौगोलिक समूहों में गुप्त मतदान द्वारा चुना जाता है ताकि क्षेत्र का प्रतिनिधित्व भी सुनिश्चित हो सके।
एशिया प्रशांत क्षेत्र से चार देश चुने जाने थे, जिसके लिए पांच देशों ने अपनी दावेदारी पेश की थी। जिसमें सऊदी अरब भी शामिल था।
परिणामस्वरूप 193 सदस्यों द्वारा किए गए मतदान में पाकिस्तान को 169 मत मिले, उजबेकिस्तान को 164, नेपाल को 150, चीन को 139 और सऊदी अरब को सिर्फ 90 वोट मिले। नए सदस्य 1 जनवरी 2021 से अपना कार्यकाल शुरू करेंगे।
ह्यूमन राइट्स वॉच और अन्य अधिकार संगठनों ने सऊदी अरब की उम्मीदवारी का कड़ा विरोध करते हुए कहा था कि मध्य पूर्व राष्ट्र मानवाधिकार रक्षकों, आलोचकों, असंतुष्टों और महिला अधिकार कार्यकर्ताओं को निशाना बनाता है और पिछले दुर्व्यवहारों के लिए बहुत कम जवाबदेही दी, जिसमें पत्रकार जमाल खशोगी की हत्या भी शामिल है।
संयुक्त राष्ट्र में ह्यूमन राइट्स वॉच के निदेशक लुई चारबोन्यू के मुताबिक, “मानवाधिकार परिषद में सीट जीतने में सऊदी अरब की विफलता संयुक्त राष्ट्र के चुनावों में अधिक प्रतिस्पर्धा की आवश्यकता का एक स्वागत योग्य कदम है।
लेकिन जो देश चुने गए हैं उन्हें मानवाधिकार उल्लंघनों को उजागर करने से संस्था पीछे नहीं हटेगी और पीड़ितों के लिए आवाज उठाती रहेगी। मानवाधिकार उल्लंघन करने वाले सदस्य देश केंद्र पर रहेंगे।
साभार- डी डब्ल्यू हिन्दी