RTI से जानकारी मांगा तो विश्विद्यालय ने कार्यकर्ताओं से नागरिकता साबित करने के लिए कहा!

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देश में नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ़ लगातार प्रदर्शन जारी हैं। इसी बीच लखनऊ विश्वविद्यालय ने आरटीआई के तहत मांगी गई जानकारी के जवाब में सूचना मांगने वाले से पहले अपनी नागरिकता साबित करने के प्रमाण मांगे है।

 

नेटीजेन न्यूज़ डॉट कॉम पर छपी खबर के अनुसार, यूनिवर्सिटी में दो आरटीआई कार्यकर्ताओं ने सूचना के अधिकार के तहत आरटीआई दायर की थी। जिस पर विवि प्रशासन ने दोनों कार्यकर्ताओं से पहले अपनी नागरिकता साबित करने के लिए कहा है।

 

आरटीआई के तहत सूचना ना देने का यह मामला डॉ आलोक चांटिया और आरटीआई ऐक्टिविस्ट अजहर हुसैन की शिकायत पर सामने आया है। दोनों शख्स ने विवि से आरटीआई के तहत सूचना मांगी थी।

 

इसके बाद डॉ आलोक चांटिया को 1 जनवरी को और अजहर हुसैन को 28 जनवरी को जवाब मिला कि पहले नागरिकता होने का सबूत दो, तब सूचना दी जाएगी।

 

दोनों शख्स से कहा गया कि, सूचना चाहिए तो पहले अपनी नागरिकता का प्रणाम देना होगा। मामला सामने के बाद अभी तक यूनिवर्सिटी प्रशासन की ओर से कोई बयान सामने नहीं आया है।

 

आलोक चांटिया ने लखनऊ यूनिवर्सिटी से ही पढ़ाई की है। उसी यूनिवर्सिटी से 2 बार पीएचडी की और फिर उसी यूनिवर्सिटी में 15 साल तक बच्चों को एंथ्रोपोलॉजी पढ़ाई। वही यूनिवर्सिटी उनके भारतीय होने की सबूत मांग रही है।

 

केकेसी में वर्ष 2015 तक बतौर प्रफेसर रह चुके डॉ. आलोक चांटिया ने एलयू प्रशासन से वित्तविहीन शिक्षकों की नियुक्ति और उन्हें मिलने वाले वेतनमान की जानकारी मांगी थी।

 

सूचना देने के बजाय एलयू ने 3 जनवरी को उनसे नागरिकता प्रमाणपत्र मांग लिया। हालांकि विवि ने यह साफ नहीं किया है कि, नागरिकता साबित करने के लिए क्या प्रमाणपत्र देना होगा।

 

वहीं दूसरे शख्स अजहर हुसैन ने एलयू में वर्ष 2009 के बाद से अब तक पीएचडी के लिए हुए विज्ञापन और दाखिलों का ब्योरा मांगा था। इस दौरान बड़ी गड़बड़ियों की आशंका जताई थी।

 

एलयू ने सूचना देने के बजाय अजहर को पत्र भेजकर भारत का नागरिक होने का प्रमाणपत्र देने को कह दिया।

 

आपको बता दें कि, सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 की धारा-6 के तहत कोई भी भारतीय नागरिक कुछ खास जानकारियों को छोड़कर सरकार विभाग से सूचना मांग सकता है।

 

सूचना के अधिकार अधिनियम की धारा 6 (2) के तहत इसके लिए आवेदक का केवल नाम और पता ही पूछा जा सकता है।

 

इसके अलावा कोई कागज या दस्तावेज की जरूरत नहीं है। कुछ जगहों पर आधार कार्ड का नंबर मांगा जा रहा था, लेकिन उसपर भी सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा दी। उप्र सूचना का अधिकार नियमावली 2015 में भी नाम और पते के अलावा कोई कागज या दस्तावेज की बाध्यता नहीं है।