वाराणसी के तीन लाख मुस्लिम किसको देंगे वोट?

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लोकसभा चुनाव के आखिरी चरण के मद्देनजर पार्टियां जातिगत आधार पर वोटों की गुणा-गणित में जुट गई हैं। ऐसे में बनारस के करीब तीन लाख मुस्लिम मतदाताओं की भूमिका भी काफी मायने रखती है। अभी तक माना जाता था कि मुस्लिम मतदाता बीजेपी को पसंद नहीं करता है।

मगर पिछले चुनाव का आंकड़ा व आखिरी चरण के रुझान पर गौर करें तो यह अवधारणा टूटती नजर आती है। पिछले लोकसभा चुनाव में जहां बीजेपी को करीब 7-8 फीसद मुस्लिम वोट मिले थे, वहीं इस बार यह आंकड़ा 15 से 20 फीसद तक पहुंचने की संभावना जताई जा रही है।

जाहिर सी बात है तमाम विरोधाभास के बीच बीजेपी कांग्रेस व सपा-बसपा के परंपरागत वोट बैंक को आकर्षित करने में कामयाब रही है। बनारस के तीन लाख मुस्लिमों में ज्यादातर बुनकर ही हैं। बाजार की उपलब्धता न होने व बिचौलियों की घुसपैठ से यह तबका मुनाफे से महरूम रहा करता था।

मगर ‘वन डिस्ट्रिक्ट वन प्रोडक्ट’ के तहत बनारस से सिल्क उत्पाद के चयन ने यहां की तस्वीर को बदला है। साथ ही दीनदयाल हस्तकला संकुल ने ब्रांड बनारस की वैश्विक पहचान को पुख्ता किया। वहीं तीन तलाक का मसला हो या गरीबों को निश्शुल्क स्वास्थ्य सुविधा के लिए आयुष्मान योजना की बात समाज ने फर्क महसूस किया है।

लल्लापुरा के मोहम्मद मोअज्जम का मानना है कि कमलापति त्रिपाठी के बाद वर्तमान समय में बनारस विकास के पथ पर अग्रसर है। उनकी मंशा है कि शांति बनी रहे और नौजवानों को रोजगार मिले।

वहीं पीलीकोठी के अनवार अहमद कहते हैं कि बनारस अपनी गंगा-जमुनी तहजीब के लिए जाना जाता है। हो सकता है कुछ लोग भाजपा को वोट दें, लेकिन आम जनता सेक्युलर और अमन पसंद है। ऐसे लोग उनका साथ नहीं देंगे।

कांग्रेस के साथ बढ़ी भाजपा की स्वीकार्यता : बनारस में मुस्लिमों का वोट फीसद इस बार 55 से 60 फीसद तक रहने की उम्मीद है। यानी मुसलमानों के लगभग 1,80,000 से अधिक वोट पड़ सकते हैं।

कतुआपुरा के हासिम अंसारी के मुताबिक इसमें से 40 से 45 फीसद कांग्रेस, 20 से 25 फीसद सपा-बसपा व 15 से 20 फीसद बीजेपी को मिल सकता है। 22 पार्षदों के साथ कांग्रेस की नगर निकाय में स्थिति काफी मजबूत है। इनमें से अधिकांश पार्षद मुस्लिम हैं और मुसलमानों की घनी आबादी का प्रतिनिधित्व करते हैं।

साभार- जागरण डॉट कॉम