क्या हमारे विश्वविद्यालय जानबूझकर जकड़बंदी की स्थिति में हैं?

   

लेखक: वरुण गांधी

2012 से उच्च शिक्षा पर खर्च 1.3 से 1.5 फीसद पर स्थिर रहा है।

दिलचस्प है कि इस दौरान शिक्षा मंत्रालय उच्च शिक्षा संस्थानों को आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के लिए दस फीसद का कोटा लागूकरने के लिए अपनी सेवा क्षमता को 25 फीसद बढ़ाने के लिए जोर देता रहा है, जबकि वित्त मंत्रालय ने शिक्षण के लिए नए पदों केसृजन पर रोक का राग आलाप रहा है। केंद्रीय स्तर पर छात्रों को मिलने वाली वित्तीय मदद को वित्त वर्ष 2021-22 में 2,482 करोड़रुपये से घटाकर वित्त वर्ष 2022-23 में 2,078 करोड़ रुपये कर दिया गया। इसी तरह इस दौरान अनुसंधान और नवाचार के लिएवित्तीय आवंटन में आठ फीसद की कमी आई है।

दरअसल, तमाम बड़े शिक्षण संस्थान कई तरह के संकटों से घिरे हैं। विश्वविद्यालय स्तर पर वित्तीय संकट, संकाय के लिए अनुसंधान केअवसरों में कमी, खराब बुनियादी ढांचे और छात्रों के लिए सीखने के सिकुड़ते अवसर से स्थिति खासी दयनीय हो गई है। किसी भीविरोध के खिलाफ बर्बर पुलिस कार्रवाई और कैंपस में दमनात्मक गतिविधियों ने हालात को और चिंताजनक बना दिया है। ऐसे में यहसवाल लाजिम है कि क्या हमारा राज्य और उसकी नौकरशाही अपने ही विश्वविद्यालयों को फलने-फूलने से रोक रही है?

विश्वविद्यालय के बुनियादी ढांचे में निवेश लगातार घटता जा रहा है। देश के ज्यादातर विश्वविद्यालय, आईआईटी और आईआईएम काबुनियादी ढांचा खस्ताहाल है। सभी जगह कक्षाओं में क्षमता से ज्यादा क्षात्र हैं, आबोहवा और स्वच्छता की स्थिति बदतर है। छात्रावासोंकी भी स्थिति अच्छी नहीं है। उच्च शिक्षा अनुदान एजेंसी (एचईएफए) ने वित्त वर्ष 2020-21 में अपने बजट को 2000 करोड़ रुपये सेघटाकर वित्त वर्ष 21-22 में एक करोड़ रुपये कर दिया और अब वित्त वर्ष 2022-23 के लिए महज एक लाख रुपये आवंटित किए गएहैं। विश्वविद्यालयों को ऋण लेने के लिए मजबूर किया जा रहा है। मसलन, एचईएफए से दिल्ली विश्वविद्यालय 1075 करोड़ रुपये का कर्ज मांग रहा है।

जो स्थिति है उसमें विश्वविद्यालयों के लिए दिन-प्रतिदिन चलने वाले खर्चों को भी पूरा करना मुश्किल है। यूजीसी को वित्त वर्ष 2021-22 के 4693 करोड़ रुपये के मुकाबले 2022-23 में 4,900 करोड़ रुपये आवंटित किए गए, लेकिन नकदी प्रवाह में कमी के कारणडीम्ड/केंद्रीय विश्वविद्यालयों के वेतन भुगतान में देरी हुई है। जो सूरत है उसमें देश के ज्यादातर विश्वविद्यालय घाटे में चल रहे हैं। मद्रासविश्वविद्यालय ने 100 करोड़ रुपये से अधिक का संचित घाटा देखा, जिससे उसे राज्य सरकार से 88 करोड़ रुपये का अनुदान प्राप्तकरने के लिए मजबूर होना पड़ा। दिल्ली विश्वविद्यालय के 12 कॉलेजों में वित्तीय कमी देखी जा रही है। राज्य द्वारा आवंटन लगभगआधे से कम हो गया है। मसलन, दीन दयाल उपाध्याय कॉलेज को 2021 में 42 करोड़ रुपये की दरकार थी जबकि उसे आवंटित किएगए 28 करोड़ रुपये। श्री लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, दिल्ली विश्वविद्यालय, विश्व भारती, नगालैंडविश्वविद्यालय, झारखंड विश्वविद्यालय और दक्षिण बिहार सरीखे कई विश्वविद्यालयों के फैकेल्टी के सदस्यों को महीनों से वेतन में देरीका सामना करना पड़ रहा है। वेतन हफ्तों बाद में आ रहे हैं।

वित्तीय संकटे के कारण विश्वविद्यालयों के विवेकाधीन खर्च में कटौती हुई है। दिल्ली के कई कॉलेज बुनियादी डेटाबेस और पत्रिकाओंकी सदस्यता लेने में असमर्थ हैं। बुनियादी ढांचे के लिए अनुदान/ऋण और निर्बाध आर्थिक मदद का तंत्र स्थापित करने के साथ-साथवित्तीय आवंटन बढ़ाने की तत्काल आवश्यकता है। विश्वविद्यालयों को स्टार्ट-अप रॉयल्टी और विज्ञापन जैसे राजस्व विकल्पों काउपयोग करने के लिए भी मुक्त करने की दरकार है।

अनुसंधान अनुदान भी काफी कम हो गया है। यूजीसी की लघु और प्रमुख अनुसंधान परियोजना योजनाओं के तहत अनुदान वित्त वर्ष2016-17 में 42.7 करोड़ रुपये से घटकर वित्त वर्ष 2020-21 में 38 लाख रुपये रह गया है। भारत में 1043 विश्वविद्यालय हैं, लेकिन महज 2.7 फीसद पीएचडी कार्यक्रमों की पेशकश करते हैं। ऐसे विश्वविद्यालयों को न्यून वित्तीय पोषण और खराब बुनियादीढांचे का सामना करना पड़ रहा है। विश्वविद्यालयों में अनुसंधान के बुनियादी ढांचे में सुधार के लिए नेशनल रिसर्च फाउंडेशन(एनआरएफ) को अभी तक मंजूरी नहीं मिली है। उसके पास बजट का भी संकट है।

स्पष्ट रूप से अनुसंधान के लिए विश्वविद्यालयों के वित्त पोषण में उल्लेखनीय वृद्धि की आवश्यकता है। एनआरएफ जैसे संस्थानमौजूदा योजनाओं (विज्ञान मंत्रालय सहित) के पूरक हैं। अंडरग्रेजुएट्स के लिए पाठ्यक्रम-आधारित शोध अनुभवों को सक्षम करने केलिए राशि भी आवंटित की जानी चाहिए।

दरअसल, फिलहाल जो आलम है उसमें शैक्षणिक मानकों और प्रक्रियाओं को बनाए नहीं रखा जा रहा है। परीक्षा का पेपर लीक होनाआम बात हो गई है। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की राष्ट्रीय पात्रता परीक्षा के पर्चे जून 2021 में लीक हो गए थे। उम्मीदवारों ने ऐसेपरीक्षा केंद्र संचालकों के बारे में बताया, जो प्रति उम्मीदवार तीन लाख रुपये लेकर उन्हें परीक्षा पास कराने में मदद करते हैं। हाल ही में, वीर नर्मद दक्षिण गुजरात विश्वविद्यालय ने 26,000 छात्रों को प्रभावित करते हुए चुनिंदा बी.कॉम और बी.ए. पाठ्यक्रमों के लिएपरीक्षाओं का पुनर्निधारण किया। ऐसे तमाम संस्थान अपनी परीक्षाओं की शुचिता की रक्षा करने की बुनियादी जवाबदेही को निभाने मेंअसफल रहे हैं।