VIDEO: जापान में ‘उर्दू’ की पहचान करीब 110 सालों से बनी हुई है!

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उर्दू दुनिया की बेहतरीन भाषाओं में शुमार किया जाता है। इसकी मिठास से हर कोई मुरीद बन जाता है। आज भी बॉलीवुड में गाने हो या पटकथा, इस भाषा के जरिए उसे सुन्दर बनाने की कोशिश की जाती रही है। इसे अदब की भाषा भी कही जाती है।

इस भाषा को जानने वाले हिन्दुस्तान और पाकिस्तान की पहचान खास होती रही है। मगर आज आप भी सुनकर और पढ़कर हैरान होंगे कि जापान में यह भाषा बहुत मशहूर है। एक जापानी उर्दू जानकार के अनुसार यह भाषा जापान में 110 सालों से बोली जाती रही है। कहा जा रहा है कि जापान में इसका काफ़ी क्रेज़ रहा है।


न्यूज़18 पर छपी खबर के अनुसार, दिल्ली में होने वाले सालाना ‘जश्न ए बहार’ मुशायरा में जब यह शख्स स्टेज पर चढ़ते हैं तो तालियां ज्यादा ही तेज़ बजने लगती हैं।

जापान के ओसाका यूनिवर्सिटी में उर्दू पढ़ाने वाले प्रोफेसर सो यमाने इस कार्यक्रम की मानो रौनक हैं। प्रोफेसर यमाने वैसे तो जापानी हैं लेकिन उनकी आत्मा जैसे उर्दू ज़बान ही जानती है।

इतनी साफ उर्दू बोलना और सिर्फ बोलना ही नहीं, उसमें शेर पढ़ना यमाने को औरों से अलग बनाता है। उर्दू का ऐसा कौन सा शायर नहीं है जिसके बारे में यमाने नहीं जानते। मीर त़की मीर, मिर्ज़ा ग़ालिब को जैसे उन्होंने घोंट के पी लिया है।

फिराक़ गोरखपुरी इनके पसंदीदा शायर हैं क्योंकि यमाने को लगता है कि उनके शेर में एक लय होती है। बड़ी ही सहजता के साथ वह गोरखपुरी को पढ़ देते हैं कि ‘इसके आंसू किसने देखे, उसकी आहें किसने सुनी; चमन चमन था हुस्न भी लेकिन दरिया दरिया रोता था..’

अपने मज़ाकिया अंदाज़ में न्यूज़ 18 हिन्दी से बात करते हुए यमाने बताते हैं किस तरह उर्दू से उनकी पक्की दोस्ती हुई। 70 के दशक में ओसाका यूनिवर्सिटी में उर्दू विषय की जब शुरूआत हुई तब यमाने ने भी रुचि ली। उन्होंने अपने गुरू से पूछा कि उन्हें हिन्दी पढ़नी चाहिए या उर्दू जिस पर जवाब मिला – ‘उर्दू बहुत शीरीं ज़बान है, तुम वही पढ़ो क्योंकि तुम्हारा मिज़ाज बहुत खट्टा है।

इसके बाद यमाने ने पीछे मुड़कर नहीं देखा और उर्दू के साथ उनकी ऐसी पटरी बैठी कि हिन्दुस्तान, पाकिस्तान, बांग्लादेश के मुशायरों में उनका आना और तालियां बटोरना कोई नई बात नहीं रही है।