इजरायल के खिलाफ़ फलस्तीनी संघर्षकरताओं के आन्दोलन के 19 साल पुरे!

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इजराइली जुल्मों के खिलाफ़ फलस्तीनीयों के आन्दोलन को 19 साल पुरे, अब मंजिल के करीब है लड़ाई!

19 साल पहले आज ही के दिन यानी 28 सितम्बर सन 2000 को तत्कालीन ज़ायोनी प्रधानमंत्री एरियल शैरून ने मुसलमानों के सबसे पवित्र स्थलों में से एक मस्जिदुल अक़सा का अनादर करके उस आंदोलन की चिंगारी को ज्वाला बना दिया था जिसें अब फ़िलिस्तीन के दूसरे इंतेफ़ाज़ा के नाम से जाना जाता है।


पार्स टुडे डॉट कॉम के अनुसार, 28 सिम्बर सन 2000 को एरियल शैरून ज़ायोनी सैनिकों की एक बड़ी संख्या के साथ मस्जिदुल अक़सा में जूते पहन कर घुस गए थे और उसी समय नमाज़ पढ़ रहे फ़िलिस्तीनियों ने इसका कड़ा विरोध किया जिसके नतीजे में टकराव हुआ और सात फ़िलिस्तीनी शहीद और ढाई सौ से अधिक घायल हो गए।
https://youtu.be/egOnJt_m1Z8
इस घटना के तुरंत बाद पूरे अतिग्रहित बैतुल मुक़द्दस में दोनों पक्षों के बीच तीव्र झड़पें शुरू हो गईं। ये झड़पें बड़ी तेज़ी के साथ ग़ज़्ज़ा पट्टी और पश्चिमी तट के सभी शहरों में फैल गईं और आंदोलन को “मस्जिदुल अक़सा के इंतेफ़ाज़ा” का नाम दिया गया।

इस इंतेफ़ाज़ा के दूसरे ही दिन एक फ़िलिस्तीनी बच्चा ज़ायोनी सैनिकों की फ़ायरिंग में शहीद हो कर इस इंतेफ़ाज़ा के प्रतीक में बदल गया। मुहम्मद दुर्रा नामक यह बच्चा अपने पिता के साथ ग़ज़्ज़ा पट्टी की एक सड़क पर कंक्रीट की एक दीवार की आड़ में छिप कर बैठा था लेकिन वह वहां भी ज़ायोनी सैनिकों की गोलियां से बच न सका और उसने अपने पिता की नज़रों के सामने दम तोड़ दिया।

फ़्रान्स के टीवी ने इसके अगले दिन यानी तीस सितम्बर सन 2000 को इस हृदय विदारक घटना की वीडियो प्रसारित कर दी जिसने पूरी दुनिया को झकझोर कर रख दिया। मुहम्मद दुर्रा की शहादत के बाद इंतेफ़ाज़ा आंदोलन को और अधिक गति मिल गई और फ़िलिस्तीनी राष्ट्र ने व्यापक स्तर पर प्रदर्शन शुरू कर दिए। इन प्रदर्शनों पर ज़ायोनियों के हमलों में दसियों फ़िलिस्तीनी शहीद हो गए।

फ़िलिस्तीन का दूसरा इंतेफ़ाज़ा आंदोलन, पहले इंतेफ़ाज़ा के मुक़ाबले में अधिक व्यापक था। औपचारिक आंकड़ों के अनुसार “मस्जिदुल अक़सा के इंतेफ़ाज़ा” में 4412 फ़िलिस्तीनी शहीद हुए जबकि 48000 से अधिक घायल हो गए। ज़ायोनी सेना ने फ़िलिस्तीनियों के हज़ारों घरों को भी ध्वस्त कर दिया।

फ़िलिस्तीनियों ने भी पूरी शक्ति से ज़ायोनियों के अपराधों का जवाब दिया और उनकी सबसे अहम कार्यवाही, ज़ायोनी शासन के तत्कालीन पर्यटन मंत्री रहबआम ज़ईफ़ी की हत्या थी। दूसरे इंतेफ़ाज़ा के दौरान फ़िलिस्तीन के संघर्षकर्ता गुटों ने अपनी सैन्य शाखाओं को मज़बूत बनाने पर ध्यान केंद्रित किया और अपने संघर्ष को उपकरणों को बदल दिया।

जहां वे पहले पत्थरों और पेट्रोल बमों से संघर्ष कर रहे थे, वहीं अब उन्होंने राॅकेटों और मीज़ाइलों से ज़ायोनी शासन पर हमले शुरू कर दिए। उन्होंने अपने मीज़ाइलों से ज़ायोनियों काॅलोनियों को निशाना बनाया जिससे ज़ायोनी शासन में भय व्याप्त हो गया।

अतिग्रहित फ़िलिस्तीन के दक्षिण में स्थित उसदूत नामक ज़ायोनी काॅलोनी, इज़्ज़ुद्दीन क़स्साम ब्रिगेड के आरंभिक मीज़ाइल हमलों का निशाना बनी। इज़्ज़ुद्दीन क़स्साम ब्रिगेड हमास की सैन्य शाखा है। 26 अक्तूबर सन 2001 को इस ब्रिगेड ने उसदूत काॅलोनी पर पहला मीज़ाइल हमला किया।

इसके बाद इस ब्रिगेड की मीज़ाइल क्षमता में तेज़ी से विस्तार हुआ और उसने ज़ायोनियों की कई अन्य बड़ी काॅलोनियों को निशाना बनाया। इसके बाद फ़िलिस्तीन के अन्य प्रतिरोधकर्ता गुटों ने भी अपने सैन्य शक्ति में विस्तार आरंभ किया और अब उनकी मीज़ाइल शक्ति इतनी बढ़ चुकी है कि ज़ायोनियों की नींद उड़ चुकी है और अब हर कुछ समय बाद अतिग्रहित फ़िलिस्तीन में ख़तरे का सायरन बजने लगता है।

टीकाकारों का कहना है कि अब वह दिन दूर नहीं है जब फ़िलिस्तीनी अपनी मंज़िल तक पहुंच जाएंगे क्योंकि इस्राईल दिन प्रतिदिन कमज़ोर पड़ता जा रहा है और इससे भी अहम बात यह है कि उसके सैनिकों के हौसले पस्त हो चुके हैं।