कश्मीर का पांच दिवसीय दौरा करके लौटे कार्यकर्ताओं के एक समूह ने दावा किया कि घाटी में हालात “सामान्य नहीं” हैं। प्रसिद्ध अर्थशास्त्री ज्यां द्रेज और कार्यकर्ताओं मैमूना मोल्ला, कविता कृष्णन और विमल भाई ने जम्मू-कश्मीर से विशेष राज्य का दर्जा वापस लिये जाने के बाद जमीनी हालात जानने के लिये 9 से 13 अगस्त के बीच कश्मीर के कई इलाकों का दौरा किया।
उन्होंने एक संवाददाता सम्मेलन में यात्रा की रिपोर्ट जारी करते हुए आरोप लगाया कि कश्मीर के “वास्तविक हालात” बताए जा रहे हालात से “काफी अलग” हैं।
वहीँ श्रीनगर का दौरा करके लौटी टीम को दिल्ली स्थित प्रेस क्लब ने बुधवार को वहां के वीडियो दिखाने की अनुमति नहीं दी। हालांकि टीम के सदस्यों ने प्रेस क्लब में कॉन्फ्रेंस की। भाकपा (माले) की सदस्य कविता कृष्णन, अर्थशास्त्री ज्यां द्रेज और नेशनल अलायंस ऑफ पीपुल्स मूवमेंट के विमल भाई ने कहा कि वह लोग और उनके साथी नौ अगस्त से 13 अगस्त तक श्रीनगर और उसके आसपास के इलाकों में गए और स्थानीय लोगों से अनुच्छेद 370 पर बातचीत की। इसी के आधार पर उनका कहना है कि कश्मीर में केंद्र सरकार के कदम से नाराजगी है और सरकार को तुरंत कश्मीर की पुरानी स्थिति बहाल करनी चाहिए। लोगों को लगता है कि केंद्र सरकार ने अनुच्छेद 370 को कमजोर कर कश्मीर से भारत का रिश्ता ही खत्म कर दिया है।
दल का दावा है कि ज्यादातर मीडिया में जो दिखाया जा रहा है, वह पूरी तरह से सच नहीं है। मीडिया में श्रीनगर के कुछ हिस्सों को दिखाकर कहा जा रहा है कि स्थिति सामान्य हो रही है। लेकिन ऐसा नहीं है।
उनका कहना है कि हमारा दल श्रीनगर के अलावा दूसरे क्षेत्रों में भी गया, जहां अनुच्छेद 370 के फैसले से लोगों में भारी नाराजगी है। दल का दावा है कि श्रीनगर में भी थोड़े से एटीएम, अस्पताल और दवा की कुछ दुकानें ही खुली हैं। बाकी पूरे इलाके में सन्नाटा पसरा हुआ है।
दल का दावा है कि उन्होंने इस मसले पर सैकड़ों लोगों से बातचीत की है। जिसमें स्थानीय कश्मीरी से लेकर देश के दूसरे राज्यों से यहां आए कामगार आदि भी शामिल हैं। सभी का कहना है कि सरकार को यह कदम नहीं उठाना चाहिए था। स्थानीय लोगों को इस बात की आशंका है कि देर-सबेर जब पाबंदियां हटा दी जाएंगी तो विरोध प्रदर्शनों की शुरूआत हो सकती है। इससे हिंसा बढ़ने की आशंका है।
दल ने कहा कि सुरक्षाबलों की सख्ती इस हद तक है कि लोग अपने घरों से बाहर नहीं निकल पा रहे हैं। यहां तक कि अपने पड़ोसियों से भी बातचीत नहीं कर पा रहे हैं। एक स्थानीय युवक का कहना था कि यदि यह निर्णय हमारे फायदे और विकास के लिए है तो हमसे क्यों नहीं पूछा जा रहा है? अनंतनाग जिले के गौरी गांव के एक व्यक्ति ने कहा, ”हमारा उनसे रिश्ता अनुच्छेद 370 और 35ए से था। अब उन्होंने अपने ही पैर पर कुल्हाड़ी मार ली है। अब तो हम आजाद हो गए हैं।”
बटमालू में एक व्यक्ति ने कहा कि ”जो भारत के गीत गाते हैं, अपने बंदे हैं, वे भी बंद हैं।” एक कश्मीरी पत्रकार ने कहा कि ”मुख्यधारा की पार्टियों से जैसा बर्ताव किया जा रहा है उससे स्थानीय लोग खुश हैं। ये पार्टियां भारत की तरफदारी करती हैं और अब जलील हो रही हैं।” श्रीनगर के जहांगीर चौक के एक होजरी व्यापारी ने कहा, ”उन्होंने हमारे खिलाफ कुछ नहीं किया, बल्कि अपने ही संविधान का गला घोंट दिया है। यह हिंदू राष्ट्र की दिशा में पहला कदम है।”
स्थानीय लोगों में अनुच्छेद 35ए खत्म किए जाने के बाद आशंका है। उनका कहना है कि अब राज्य की जमीन सस्ते दामों में कॉरपोरेट्स को बेच दी जाएंगी। कश्मीर की जमीन और संसाधनों को हड़प लिया जायेगा। ज्यादातर कश्मीरियों के पास नौकरियां नहीं होंगी या फिर वे दूसरे राज्यों में जाने के लिए मजबूर होंगे।
Watch the short film – Kashmir Caged – based on footage we collected in Kashmir here. Press Club of India wouldn't let us show it on their premises. But do watch and share. https://t.co/93Ir9un5k3
— Kavita Krishnan (@kavita_krishnan) August 14, 2019
बांदीपुरा के पास वतपुरा में एक युवक ने बताया कि ”यहां मोदी नहीं, सेना का राज है।” उसके दोस्त ने कहा, ”हम डरे हुए हैं क्योंकि पास में सेना के कैम्प से ऐसे नियम कायदे थोपे जाते हैं जिन्हें पूरा कर पाना लगभग असंभव हो जाता है। वे कहते हैं कि घर से बाहर जाओ तो आधा घंटे में ही लौटना होगा। अगर मेरा बच्चा बीमार है और उसे अस्पताल ले जाना है तो आधा घंटा से ज्यादा भी लग सकता है। अगर कोई पास के गांव में अपनी बेटी से मिलने जाएगा तो भी आधा घंटा से ज्यादा ही लगेगा। लेकिन अगर थोड़ी भी देर हो जाए तो हमें प्रताडि़त किया जाता है।” श्रीनगर में अस्थमा से पीड़ित एक ऑटो ड्राइवर ने हमें अपनी दवाइयों की आखिरी डोज दिखाते हुए बताया कि वह कई दिनों से दवा खरीदने के लिए भटक रहा है, परंतु उसके इलाके में कैमिस्ट की दुकानों और अस्पतालों में स्टॉक खत्म हो चुका है। वह बड़े अस्पताल में जा नहीं सकता क्योंकि रास्ते में सीआरपीएफ वाले रोकते हैं।