इस्राईल के विदेश मंत्रालय की दावत पर अवैध अधिकृत फ़िलिस्तीन की यात्रा पर जाने वाले सऊदी कार्यकर्ता के साथ जो कुछ हुआ है, उस पर जिस तरह फ़िलिस्तीनियों ने शाब्दिक प्रहार किया बल्कि उस पर थूका और उसे लातें मारीं वह सब सोशल मीडिया पर वायरल हो गया।
यह घटना इस बात का प्रमाण है कि इस्राईल से दोस्ती के लिए व्याकुल अरब शासकों के ख़िलाफ़ अरब जगत व इस्लामी जगत में कितनी घृणा पायी जाती है।
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सबसे पहले तो यह कहना चाहिए कि मुहम्मद बिन सऊद नाम का यह कार्यकर्ता अपने देश की नीतियों की भेंट चढ़ा। सऊदी शासक इस प्रकार के लोगों को बलि का बकरा बना कर प्रयोग कर लेते हैं।
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सऊदी अधिकारी इस्राईल से अपने संबंध स्थापित करने का अनुकूल वातावरण बनाने के लिए इसी तरह के लोगों को प्रयोग करते हैं। इतना तो तय है कि यह कार्यकर्ता इस्राईल की दावत सऊदी सरकार की स्वीकृति के बग़ैर स्वीकार करने की हिम्मत नहीं कर सकता था बल्कि शायद सऊदी अधिकारियों ने भी उसे इस यात्रा के लिए प्रत्साहित किया हो।
हम यह बात इसलिए कह रहे हैं कि सऊदी सरकार की नीतियों के ख़िलाफ़ यदि कोई पत्रकार, कार्यकर्ता या धर्मगुरु ट्वीट भी कर दे तो सलाखों के पीछे पहुंचा दिया जाता है।
यह तय है कि सऊदी अरब में एक गलियारा मौजूद है जो इसी कार्यकर्ता जैसी सोच रखता है अर्थात इस्राईल के साथ सऊदी अरब की दोस्ती के ख़्वाब देखता है। इस गलियारे के लोगों के इस्राईलियों से संबंध हैं।
सबसे दुख की बात यह है कि इस प्रकार की यात्राओं का फ़िलिस्तीनी प्रशासन और महमूद अब्बास ने ख़ुद स्वागत किया है। यही वजह है कि अरब नेताओं का बैतुल मुक़द्दस की यात्रा के लिए तांता बंध गया। इनमें कुछ तो विदेश मंत्री के पद पर भी हैं।
सऊदी कार्यकर्ता पर जिस तरह प्रहार हुआ और जिस तरह उसको लातें मारी गईं और उस पर लोगों ने थूका और कहा कि मस्जिदुल में नहीं बल्कि इस्राईली संसद में जाकर नमाज़ पढ़ो क्योंकि जो लोग इस्राईल से दोस्ती की इच्छा मन में पाल रहे हैं उन्हें मस्जिदुल अक़्सा में नमाज़ पढ़ने और उसे दूषित करने की अनुमति नहीं दी जा सकती, इससे पता चलता है कि फिलिस्तीन की जनता को महमूद अब्बास और फ़िलिस्तीनी प्रशासन की नीति एक आंख नहीं भायी।
यहां यह याद दिलाते चलें कि मस्जिदुल अक़सा में सबसे पहले जिसकी जूतों से पिटाई हुई थी वह मिस्र के पूर्व राष्ट्रपति हुस्नी मुबारक के विदेश मंत्री अहमद माहिर थे जो लोगों के बीच शामिल होकर मस्जिद अक़सा में नमाज़ पढ़ना चाहते थे।
इस तरह ख़ुद को घृणा का पात्र बनाने वाले इन नेताओं और कार्यकर्ताओं के लिए यही कहना चाहिए कि वह अरब जगत के सज्जन व्यक्तियों की तरह इस्राईल को ख़ारिज कर देते जो फ़िलिस्तीन, लेबनान, सीरिया, मिस्र, जार्डन, सूडान तथा अधिकतर अरब देशों में बेगुनाह लोगों का ख़ून बहाने में लिप्त रहा है।
पार्स टुडे डॉट कॉम के अनुसार, इस्राईल से दोस्ती की बातें करने वाले यह तत्व गुज़रते हुए बादलों की तरह हवा में उड़ जाएंगे जो बचेंगे वह महान संघर्षकर्ता हैं जो फ़िलिस्तीन की रक्षा के लिए मौत को गले लगाने से नहीं घबराते।