अफगानिस्तान में ज़ंग को हर हाल में खत्म करना हमारा मकसद!

   

अमरीका और तालेबान के बीच वार्ता में शांति समझौते के मसौदे पर सहमति बन जाने की ख़बर है। अमरीका के प्रमुख वार्ताकार ज़लमै ख़लीलज़ाद ने कहा है कि अमरीका और अफ़ग़ानिस्तान के बीच शांति समझौते के मसौदे पर सहमति हो गई है जिसका लक्ष्य 17 साल से जारी लड़ाई को समाप्त करना है।

क़तर की राजधानी दोहा में दोनों पक्षों के बीच छह दिन तक वार्ता हुई जिसके बाद वह अफ़ग़ान सरकार को वार्ता के परिणाम से सूचित करने के लिए काबुल गए थे।

parstoday.com के मुताबिक ख़लीलज़ाद ने न्यूयार्क टाइम्ज़ से बातचीत में कहा कि हमारे पास एक मसौदा है और समझौता बनाने से पहले कुछ बिंदुओं की जानकारी हासिल करनी है।

उन्होंने कहा कि इस समझौते के तहत तालेबान को वादा करना होगा कि वह अफ़ग़ानिस्तान की धरती को चरमपंथ के गढ़ के रूप में प्रयोग होने से रोकेंगे।

अफ़ग़ानिस्तान के हालात के बारे में सबसे अधिक चिंता अफ़ग़ान जनता और पड़ोसी देशों को है। इन देशों की चिंता है कि अमरीका इस समय अफ़ग़ानिस्तान से आनन फ़ानन में बाहर निकल रहा है और वह समस्या को हल करने के बजाए नए विवाद की बुनियाद रखने की कोशिश कर सकता है।

यही कारण है कि अफ़ग़ान समस्या के समाधान और वहां शांति की स्थापना के लिए क्षेत्रीय देशों जैसे ईरान, रूस, पाकिस्तान और चीन की ओर से भी तालेबान से बातचीत की कोशिश हो रही है। तालेबान के प्रतिनिधिडल मास्को और तेहरान की यात्रा करते रहे हैं।

भारत ने भी अफ़ग़ानिस्तान में पूंजीनिवेश किया है और अफ़ग़ानिस्तान से अपने व्यापारिक रिश्तों को विस्तार दे रहा है, अब इस देश के बदलते परिदृश्य में दिल्ली सरकार भी अपने हितों की रक्षा के लिए चिंतत और प्रयासरत है।

अफ़ग़ानिस्तान की तसवीर क्या होगी यह आने वाले समय बताएगा मगर इतना तय है कि अमरीका अलग अलग मोर्चों पर लगातार कमज़ोर पड़ता जा रहा है।