दूसरे विश्व युद्ध के दौरान जब यूरोपीय देशों में यहूदियों का नस्लीय सफ़ाया किया जा रहा था, तो ईरान, यहूदियों और पोलिश कैथोलिक ईसाई शरणार्थियों के लिए स्वर्ग से कम नहीं था।
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पार्स टुडे पर छपी खबर के अनुसार, 1942 की गर्मियों में केस्पियन सागर का एक शांत तटीय शहर, यहूदी शरणार्थियों का केन्द्र बन गया था। इसके तट पर तम्बुओं का एक बड़ा शहर आबाद हो गया था। नज़दीक ही टाइफाइड रोगियों के लिए एक विशेष क्षेत्र का निर्माण किया गया था।
In the middle of World War II, Tehran became a haven for both Jewish and Catholic Polish refugees. https://t.co/i8h2nZ4w4n
— Arshin Adib-Moghaddam (@Adib_Moghaddam) October 19, 2019
भोजन वितरण के लिए एक बड़े क्षेत्र को विशेष किया गया था। तम्बुओं तक स्थानीय लोग मिठाई, केक और अन्य ज़रूरत की चीज़ें शरणार्थियों तक पहुंचाते थे।
यह शरणार्थी यूरोपीय देशों और विशेष रूप से पोलैंड से हज़ारों मील का फ़ासला तय करके सोवियत संघ के रास्ते उत्तरी ईरान पहुंचे थे। मार्च 1942 तक 43,000 से अधिक शरणार्थी ईरान के बंदर अंज़ली शहर पहुंच चुके थे।
In the middle of World War II, Tehran became a haven for Jewish refugees.
One can imagine a world after the Islamic Republic falls when Iran will welcome Israeli Jews & when Iranian Muslims will travel to Israel without fear of retribution back home. https://t.co/MBrBASYRCh
— Mark Dubowitz (@mdubowitz) October 19, 2019
उसके बाद अगस्त तक 70,000 शरणार्थों का दूसरा जत्था ईरान पहुंच चुका था। तीसरे चरण में 2,700 शरणार्थी ज़मीनी रास्ते से तुर्कमेनिस्तान से ईरान के पवित्र शहर मशहद पहुंचे थे।
उस समय ईरान, युद्ध और भुखमरी से जूझ रहे यूरोप और सोवियत संघ के हर यहूदी के लिए किसी सपने से कम नहीं था। यह ऐसा पहला देश था युद्ध के भड़कते हुए शोलों से बचकर जहां वे पहुंचे थे और वह युद्ध, भूख और बीमारी से तबाह नहीं हुआ था।
वारसॉ में जन्मे रब्बी (यहूदी धर्मगुरु) हैयिम ज़ीव हिर्शबर्ग ने उन दिनों को याद करते हुए लिखा थाः “हमारे लिए ईरान एक स्वर्ग है।” वह ज़माना आज के इस ज़माने से बिल्कुल अलग था, जिसमें हम जीवन बिता रहे हैं।
उस ज़माने के विपरीत आज मध्यपूर्व में युद्ध और अशांति है, जबकि यूरोप में शांति है। यही कारण है कि बड़ी संख्या में शरणार्थी मध्यपूर्व से यूरोप का रुख़ कर रहे हैं।
चरमपंथी यहूदी (ज़ायोनी) मुसलमानों के दुश्मन नम्बर वन बने हुए हैं और विश्व में इस्लामोफ़ोबिया फैला रहे हैं। वह समय था, जब बड़ी संख्या में शरणार्थी ईरान, तुर्की और फ़िलिस्तीन का रुख़ कर रहे थे और इन देशों में पहुंचकर शांतिपूर्ण और सुखी जीवन बिता रहे थे।
साभार- पार्स टुडे डॉट कॉम
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