सर सैय्यद डे: आज मनाई जा रही है 202वीं जयंती!

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अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (एएमयू) के संस्थापक सर सैयद अहमद खां की 202वीं जयंती है। हर साल की तरह इस साल भी अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में सर सैयद अहमद खान की जयंती मनाई जा रही है।

हरिभूमी पर छपी खबर के अनुसार, अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में सर सैय्यद अहमद खां के जीवन और समाज में उनके योगदान से छात्रों को परिचित कराया गया। बता दें कि सर सैयद अहमद खां ने ही अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी की स्थापना की थी।

चलिए जानतें हैं इनके बारे में… सर सैयद अहमद खां का प्रारंभिक जीवन एवं शिक्षा 17 अक्टूबर 1817 में दिल्ली के सादात (सैयद) परिवार में जन्म सैयद अहमद खां को बचपन से ही पढ़ने लिखने का शौक था।

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जानिए, उनकी जीवनी
सैयद अहमद खां पर पिता की तुलना में मां का विशेष प्रभाव था। माता-पिता से मिले संस्कारों की वजह से वह सामाजिक उत्थान के क्षेत्र में आए। जब वह 22 साल की थे उनके पिता का निधन हो गया था जिस वजह से परिवार को आर्थिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। थाड़ी शिक्षा हासिल करने के बाद उन्हें जीवन जीने के लिए काम करना शुरू कर दिया था।

इस्ट इंडिया में थे प्रसिद्ध
वर्ष 1830 में सैयद अहमद खां ईस्ट इंडिया कंपनी में लिपिक के पद पर कार्य करना शुरू किया। वहीं उन्होंने 1841 में मैनपुरी में उप-न्यायाधीश की योग्यता हासिल। इसके बाद उन्होंने विभिन्न स्थानों पर न्यायिक विभागों में काम किया।

शिक्षा के क्षेत्र में मुसलमानों के अहम रहा
सर सैयद अहमद खां ने भारत के मुसलमानों के लिए आधुनिक शिक्षा की शुरुआत की थी। वह हिन्दुस्तानी शिक्षक और नेता भी रहे हैं।

सर सैयद अहमद खां ने अलीगढ़ में मुहम्मदन एंग्लो-ओरिएण्टल कालेज की स्थापना की जो बाद में विकसित होकर अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी बनी। इन्हीं के प्रयासों की वजह से अलीगढ़ क्रांति की शुरुआत हुई। इस क्रांति के जरिए मुस्लिम बुद्धिजीवियों और नेताओं ने भारत के सभी मुस्लिमों को शिक्षित बनाने का आह्वान किया था।

सर सैय्यद मुसलमानों के लिए प्रभावशाली नेता थे
जिस समय सर सैयद अहमद खां सर सैयद अहमद खां काम कर है थे उस दौरन वह बहुत प्रसिद्ध हुए। उन्होंने 1857 के पहले भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के समय ब्रिटिश साम्राज्य के वफादार बने रहे। इस दौरान खां ने अनेकों यूरोपियों की जान बचाई थी।

इसके संग्राम के बाद उन्होंने ‘असबाब-ए-बग़ावत-ए-हिन्द, किताब लिखी थी। इस किताब में सर सैयद अहमद खां ने ब्रिटिश सरकार की नीतियों की आलोचना की थी।

सर सैयद अहमद खां उस समय के सबसे प्रभावशाली मुस्लिम नेता थे। सर सैयद अहमद खां चाहते थे कि भारत के मुसलमानों को ब्रिटिश सरकार का वफादार नहीं होना चाहिए। इसके अलावा उन्होंने उर्दू को भारतीय मुसलमानों की सामूहिक भाषा बनाने पर जोर भी दिया था।