एशियाई देशों के दौरे से सऊदी अरब को क्या हासिल हो पाया?

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सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस मुहम्मद बिन सलमान एशियाई देशों, पाकिस्तान, भारत और चीन के दौरे करके वापस अपने देश पहुंच गए।
बिन सलमान की नीतियों के समर्थकों का कहना है कि यह दौरे बहुत कामयाब रहे क्योंकि बिन सलमान पाकिस्तान, भारत और चीन में पूंजीनिवेश करके नया एलायंस बनाने में सफल हुए हैं।

अरबों डालर के निवेश ने ही बिन सलमान के इस दौरे को सफल बनाया जो वरिष्ठ पत्रकार जमाल ख़ाशुक़जी की हत्या के कुछ महीनों बाद हुआ। एसा लगता है कि जिन देशों का दौरान बिन सलमान ने किया वहां की सरकारों ने बिन सलमान के विरुद्ध होने वाले प्रदर्शनों को रोका जबकि मलेशिया और इंडोनेशिया ने तो अपनी जनता के दबाव में बिन सलमान को यात्रा की अनुमति देने से ही इंकार कर दिया।

मलेशिया में महातीर मुहम्मद सत्ता में हैं जो इस्राईल से दोस्ती के कट्टर विरोधी हैं जबकि इंडोनेशिया के वर्तमान राष्ट्रपति को चुनाव लड़ना है और वह दो साल पहले किंग सलमन की यात्रा की कड़वी यादें अब तक अपने में मन में रखे हुए हैं। उन्होंने किंग सलमान की छतरी पकड़ी जबकि सऊदी अरब ने इंडोनेशिया के बजाए चीन में जाकर भारी निवेश का एलान कर दिया।

सऊदी अरब ने पाकिस्तान में पूंजीनिवेश का एलान करके अपने संबंधों को मज़बूती तो दी लेकिन पाकिस्तान के संबंध पड़ोसी देश ईरान से काफ़ी तनावपूर्ण हो गए जबकि चीन में उन्होंने सऊदी अरब की छवि को नुक़सान पहुंचाया। सऊदी अरब दुनिया में ख़ुद को मुसलमानों का समर्थक प्रचारित करना चाहता है।

बिन सलमान जमाल ख़ाशुक़जी की हत्याकांड से अपनी गरदन बचाना चाहते हैं और उनकी इच्छा है कि यह मुद्दा ठंडे बस्ते में चला जाए। इसी चक्कर में उन्होंने चीन में उइगोर मुसलमानों को गिरफ़तार करके शिविरों में रखे जाने का भी समर्थन कर दिया। उन्होंने कहा कि चीन को आतंकवाद की रोकथाम करने का पूरा अधिकार है।

बिन सलमान के इस बयान से बहुत से लोगों को झटका लगा। कुछ लोगों को यह आशा थी कि वह चीन पर दबाव डालने की कोशिश करेंगे मगर बिन सलमान ने बिल्कुल उल्टा बयान दिया।

उइगोर जाति का संबंध तुर्की से है यह मुसलमान हैं जो पश्चिमी चीन तथा मध्य एशियाक कुछ भागों में रहते हैं। चीन ने लगभग दस लाख मुसलमानों को गिरफ़तार करके शिविरों में रखा है। चीन ने इसके लिए बहाना कट्टरपंथ से संघर्ष का दिया है लेकिन सच्चाई यह है कि शिविरों में रखे जाने वाले मुसलमानों को गंभीर समस्याओं का सामना है इसकी पुष्टि ह्यूमन राइट्स वाच ने भी की है।

पार्स टुडे डॉट कॉम के अनुसार, बिन सलमान ने विदेश यात्रा से वापस लौटकर अपने भाई ख़ालिद बिन सलमान को उप रक्षा मंत्री नियुक्त किया। वह इससे पहले वाशिंग्टन में सऊदी अरब के राजदूत थे, रीमा बिन बंदर को अब वाशिंग्टन में सऊदी अरब का राजदूत नियुक्त किया गया है। यह सऊदी अरब के इतिहास में पहला अवसर है कि किसी महिला को राजदूत नियुक्त किया गया है।

ख़ालिद बिन सलमान पर आरोप है कि उन्होंने सऊदी पत्रकार ख़ाशुक़जी को फुसलाकर तुर्की में सऊदी वाणिज्य दूतवास में भेजा था जहां उन्हें मार डाला गया। इसी लिए वह वाशिंग्टन लौटने से बच रहे हैं। मगर उप रक्षा मंत्री के पद पर ख़ालिद की नियुक्त से यह संदेश मिल रहा है कि मुहम्मद बिन सलमान तख़्त पर बैठने की तैयारी में हैं और वह समय क़रीब आ गया है।

उन्होंने अपने भाई को रक्षा मंत्रालय का बड़ा पद देकर रक्षा विभाग पर अपनी पकड़ मज़बूत बनाए रखने की योजना के तहत यह फ़ैसला किया है। कारण यह है कि सऊदी अरब यमन में जंग कर रहा है और आलोचकों का कहना है कि न तो सऊदी अरब यह युद्ध अब तक जीत पाया है और न ही भविष्य में जीत पाएगा। सऊदी अरब पूरी जान लगाए हुए है कि यमन के पूर्व राष्ट्रपति मंहूर हादी को किसी तरह फिर सत्ता में पहुंचा दे।

जहां तक रीमा बिन बंदर को अमरीका में सऊदी अरब का राजदूत बनाने की बात है तो इसके पीछे लक्ष्य यह है कि सऊदी अरब की छवि में सुधार आए क्योंकि ख़ाशुक़जी हत्याकांड की वजह से सऊदी अरब पूरी दुनिया में बदनाम हुआ है। मगर टीकाकार बार बार कह रहे हैं कि ख़ाशुक़जी हत्याकांड और सऊदी अरब के भीतर राजनैतिक और सामाजिक कार्यकर्ताओं की गिरफ़तारियों के मामले में सऊदी अरब अपनी बदनामी से पीछा नहीं छुड़ा पाएगा।

पश्चिमी देशों में भारी बदनामी के बाद बिन सलमान अब एशिया का रुख़ कर रहे हैं ताकि नए समर्थक मिल जाएं। अर्जेन्टीना में जी-20 के सम्मेलन में जहां अधिकतर नेताओं ने बिन सलमान की उपेक्षा की थी वहीं रूसी राष्ट्रपति पुतीन उनसे बहुत गर्मजोशी से मिले थे। तुर्क राष्ट्रपति अर्दोग़ान तो बिन सलमान के सामने गुज़रे और उन्होंने बिन सलमान को देखा तक नहीं।

बिन सलमान को शायद अब एशिया में ही उम्मीद नज़र आ रही है। वैसे बिन सलमान ने जिन तीन देशों का दौरा किया है वह तीनों ही परमाणु शक्तियां हैं, इससे अरब मीडिया में यह अटकलें भी लगाई गईं कि सऊदी