हाल ही में संपन्न हुए लोकसभा चुनाव से पहले भी भाजपा और शिवसेना के बीच तनातनी चरम पर पहुंच गई थी। लेकिन बाद में दोनों दलों ने गिले-शिकवे करते हुए गठबंधन पर सहमति बना ली थी। लेकिन इन चुनावों में एक बार फिर मोदी लहर के प्रभावी साबित होने से दोनों दलों के बीच फिर से कटुता बढ़ रही है। राज्य में सीट बंटवारे का फार्मूला फिर से दोनों दलों के बीच आड़े आ गया है।
दरअसल लोकसभा चुनाव में भाजपा को 140 से अधिक तो शिवसेना को करीब 80 विधानसभा क्षेत्रों में बढ़त मिली थी। भाजपा इसी आधार पर शिवसेना को अधिकतम 100 सीट देने को ही तैयार है। साथ ही भाजपा की निगाहें इस कवायद के जरिए अपने दम पर बहुमत हासिल कर भविष्य में शिवसेना की तरफ से किसी भी तरह के दबाव का रास्ता बंद कर देने पर भी टिकी है।
दोनों पार्टियों के बीच इस मुद्दे पर तनातनी का अंदाजा इससे भी लगाया जा सकता है कि राज्य में चुनाव अगले महीने होने की संभावना है, लेकिन अभी तक दोनों दलों के शीर्ष नेतृत्व ने सीट बंटवारे पर आपस में कोई गंभीर मंथन नहीं किया है।
भाजपा चाहती है 188 सीट पर लड़ना
भाजपा के एक वरिष्ठ नेता के मुताबिक, बीते विधानसभा चुनाव में पार्टी ने अपने दम पर 122 सीटें जीती थीं। लोकसभा चुनाव के बाद राकांपा और कांग्रेस के कई प्रमुख नेता पार्टी में शामिल हुए हैं। राकांपा और कांग्रेस के गढ़ में भाजपा को बढ़त हासिल है। साथ ही शिवसेना के मुकाबले पार्टी की ताकत में भी जबरदस्त बढ़ोतरी हुई है। लोकसभा चुनाव में कम सीटों पर लड़ने के बावजूद पार्टी को 145 विधानसभा क्षेत्रों में बढ़त मिली थी। जाहिर तौर पर अगर पार्टी अधिक सीटों पर लड़ती तो यह आंकड़ा और ज्यादा बढ़ जाता। इसी कारण पार्टी ने गठबंधन की स्थिति में कम से कम 188 विधानसभा सीटों पर लड़ने का लक्ष्य तय किया है।