बाबरी मस्जिद फैसला: मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने 6 दिसंबर से पहले..?

,

   

बाबरी मस्जिद अयोध्या पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड पुनर्विचार याचिका दाखिल करने का ऐलान कर दिया है। खबरों की माने तो यह याचिका दिसंबर के पहले हफ्ते में 6 दिसंबर से पहले की जा सकती है।

अयोध्या पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला आ जाने केे बाद भी कुछ न कुछ मुद्दा उठ ही रहा हैै, इसी बीच अब यह खबरें सामने आ रही हैैं कि, मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड रिव्यू पिटिशन दाखिल करेेेेगा।

दरअसल, अब यह मुद्दा उठ रहा है कि, किसी दूसरे की संपत्ति में ‘अवैध रूप से रखी मूर्ति’ क्या देवता हो सकती है?

राज एक्सप्रेस पर छपी खबर के अनुसार, अयोध्या के इस मसले पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ रिव्यू पिटिशन में ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड यह दलील देगा, हालांकि इस मामले को लेकर ‘सुन्नी वक्फ बोर्ड’ ने पुनर्विचार याचिका दायर करने से तो इंंकार किया है, परंतु पर्सनल लॉ बोर्ड की तरफ से इस फैसले को गलत मानते हुए रिव्यू की बात कहीं जा रहीं है।

पर्सनल लॉ बोर्ड की ओर से आने वाले माह यानी की दिसंबर में अर्जी दायर की जा सकती है, फिलहाल अभी फिक्‍स तारीख तय नहीं हुई हैै, ऐसा कहा जा रहा हैै कि, दिसंबर के पहले सप्ताह तक अर्जी दायर हो सकती है।

बाबरी मस्जिद से जुड़े राम चबूतरे के पास रखी राम लला की प्रतिमा की 1885 से ही पूजा की जाती रही है और उसे हिंदू देवता का दर्जा प्राप्त है। हमने इसे कभी चुनौती नहीं दी, लेकिन जब बाबरी मस्जिद की बीच वाली गुंबद के नीचे प्रतिमा को रखा गया तो यह गलत था। सुप्रीम कोर्ट ने खुद फैसला सुनाने के दौरान यह टिप्पणी की थी। किसी और की प्रॉपर्टी में प्रतिमा को जबरन रखा जाए तो वह देवता नहीं हो सकती।

इसके अलावा जफरयाब जिलानी ने यह बात भी कहीं है कि, ”देवता के पास 1885 से 1949 तक अपनी प्रॉपर्टी के लिए न्यायिक अधिकार था, जब तक उनकी पूजा राम चबूतरे पर की जाती थी।”

जिलानी का कहना हैै कि, सुप्रीम कोर्ट ने मस्जिद को स्वीकार करते हुए यह कहा है कि, 1857 से 1949 तक यहां मुस्लिम समाज के लोग नमाज पढ़ते थे।

सुप्रीम कोर्ट ने यह भी माना कि, मस्जिद परिसर में 1949 में अवैध तरीके से मूर्तियों को रखा गया। यदि परिसर में मूर्तियां अवैध ढंग से रखी गई हैं, तो फिर वह देवता कैसे हैं?

खबरों के अनुसार, अयोध्‍या में राम लला की मूर्ति को 22-23 दिसंबर, 1949 की आधी रात के वक्‍त बाबरी मस्जिद के गुंबद के ठीक नीचे रखा गया था और सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले के दौरान इस कार्रवाई को खुद अवैध करार दिया था।