अफगानिस्तान में शांति प्रक्रिया के लिए बाइडेन का यह है फॉर्मूला!

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अफगानिस्तान में शांति के लिए जो बाइडन प्रशासन के ताजा प्रस्ताव को लेकर यहां ज्यादा उम्मीद पैदा नहीं हुई है। बल्कि अफगान नेताओं में इस प्रस्ताव ने कई अंदेशों को जन्म दे दिया है।

अमर उजाला पर छपी खबर के अनुसार, यहां समझ यह बनी है कि जिस तरह इस प्रस्ताव को अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकेन ने भेजा, उसका मतलब है कि शांति प्रक्रिया में बाइडन प्रशासन अफगान राष्ट्रपति अशरफ गनी को ज्यादा भूमिका नहीं देना चाहता।

ब्लिंकेन के पत्र का मजमून सबसे पहले यहां के टीवी चैनल तोलो न्यूज ने प्रकाशित किया। उसके मुताबिक अगली शांति प्रक्रिया में अमेरिका के विशेष दूत जालमे खालीजाद को ज्यादा बड़ी भूमिका दी गई है।

तोलो न्यूज के मुताबिक जो बाइडन प्रशासन के सत्ता में आने के बाद अमेरिकी विदेश मंत्री और वहां के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार ने अफगानिस्तान के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार हमदुल्लाह मोहिब से कई बार फोन पर बातचीत की।

लेकिन उस दौरान अफगान सरकार अपने पुराने रुख पर कायम रही। अफगान सरकार का रुख रहा है कि जब तक तालिबान हिंसा बंद नहीं करता, उससे बातचीत आगे नहीं बढ़ सकती।

जानकारों का कहना है कि इस रुख पर अफगान सरकार के कायम रहने के कारण अब आगे की बातचीत में अमेरिका राष्ट्रपति गनी को ज्यादा अहमियत नहीं देना चाहता।

हालांकि अफगानिस्तान के विदेश मंत्री मोहम्मद हनीफ ने खंडन किया है कि अमेरिका ने गनी सरकार के प्रति अपमानजनक या उपेक्षा का रुख अपनाया है।

लेकिन अफगानिस्तान के प्रथम उप राष्ट्रपति अमरुल्लाह सालेह ने दो-टूक कहा कि ब्लिंकेन के पत्र से शांति प्रक्रिया को लेकर अफगानिस्तान सरकार का रुख नहीं बदलेगा।

गौरतलब है कि ब्लिंकेन ने ये पत्र साथ-साथ राष्ट्रपति गनी और चेयरमैन अब्दुल्लाह अब्दुल्लाह को भेजा है।

तोलो न्यूज से बातचीत में काबुल यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर फैज मोहम्मद जालांद ने कहा- ‘इससे साफ है कि गनी और अब्दुल्लाह अब्दुल्लाह को समान स्तर पर देखा गया है।

इसका मतलब यह हुआ कि अगर गनी ने शांति प्रक्रिया का विरोध किया, तो अब्दुल्लाह अमेरिका शांति प्रक्रिया को आगे बढ़ाने के लिए अब्दुल्लाह को ज्यादा अहमियत देना शुरू कर देगा।’ अब्दुल्लाह राष्ट्रपति गनी के राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी हैं और पिछले चुनाव में वे गनी को चुनौती दे चुके हैं।