किसानों ने केन्द्र सरकार के मसौदे को ठुकराया, विरोध और तेज़ होने की संभावना!

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सिंघु बॉर्डर पर चल रही किसानों की बैठक से यह जानकारी मिल रही है कि सभी नेताओं ने एक स्वर में सरकार के प्रस्ताव को नामंजूर कर दिया है। 

 

अमर उजाला पर छपी खबर के अनुसार, कृषि कानून की वापसी और बिजली से जुड़े कानून न लाने की मांग की है। इस संबंध में किसान कुछ देर में प्रेस कॉन्फ्रेंस कर पूरी जानकारी देंगे।

 

 

किसानों मुद्दा उठाया था कि कृषि अनुबंधों के पंजीकरण की व्यवस्था नए कानून में नहीं है। केंद्र ने प्रस्ताव दिया है कि जब तक राज्य सरकारें रजिस्ट्रेशन की व्यवस्था नहीं करतींं तब तक एसडीएम को लिखित हस्ताक्षरित करार की प्रतिलिपि 30 दिन के भीतर संबंधित एसडीएम को उपलब्ध कराने की व्यवस्था की जाएगी।

 

 

निजी मंडियों के रजिस्ट्रेशन की व्यवस्था संशोधन के जरिए रखने का प्रस्ताव दिया गया है। किसानों को आपत्ति थी कि नए कानून से स्थापित मंडियां कमजोर होंगी और किसान निजी मंडियों के चंगुल में फंस जाएंगे।

 

 

सरकार ने आश्वासन दिया है कि वह राज्य सरकारों को अधिकार देगी ताकि किसानों के हित में फैसला लिया जा सके और व्यापारियों पंजीकरण कराना ही होगा।

 

किसानों का मुद्दा था कि उसकी भूमि की कुर्की हो सकेगी लेकिन सरकार का कहना है कि किसान की भूमि की कुर्की नहीं की जा सकती।

 

किसानों डर है कि उनकी भूमि उद्योगपति कब्जा कर लेंगे, जिसका समाधान सरकार ने प्रस्ताव में दिया है।

 

किसानों की मांग थी कि कृषि कानूनों में किसानों को विवाद के समय कोर्ट जाने का अधिकार नहीं दिया गया है, जो दिया जाना चाहिए। सरकार इस पर राजी हो गई है।

 

किसान नेताओं ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर कहा कि हमने सरकार के सभी प्रस्ताव ठुकरा दिया है।

 

क्रांतिकारी किसान यूनियन के अध्यक्ष दर्शन पाल ने कहा कि, जो सरकार की तरफ से प्रस्ताव आया है उसे हम पूरी तरह से रद्द करते हैं। इसके अलावा अन्य नेताओं ने भी प्रेस को संबोधित किया जिसकी प्रमुख बातें निम्न हैं।