हिन्दु शब्द सभी भारतीयों पर लागू होता है- मोहन भागवत

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राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत ने हिंदू, हिंदुत्व और हिंदू राष्ट्र के मुद्दे पर संघ का ²ष्टिकोण स्पष्ट किया है। उन्होंने कहा है कि संघ के हिंदू राष्ट्र कहने के पीछे कोई राजनीतिक और सत्ता केंद्रित संकल्पना नहीं होती।

 

खास खबर पर छपी खबर के अनुसार, संघ मानता है कि हिंदू शब्द, भारत वर्ष को अपना मानने वाले सभी 130 करोड़ बंधुओं पर लागू होता है।

 

नागपुर के रेशिमबाग से संघ के विजयादशमी उत्सव को रविवार को संबोधित करते हुए मोहन भागवत ने कहा, देश की एकात्मता व सुरक्षा के हित में ‘हिन्दू’ शब्द को आग्रहपूर्वक अपनाकर, उसके स्थानीय तथा वैश्विक, सभी अर्थों को कल्पना में समेटकर संघ चलता है।

 

संघ जब ‘हिन्दुस्थान हिन्दू राष्ट्र है’ इस बात का उच्चारण करता है तो उसके पीछे कोई राजनीतिक अथवा सत्ता केंद्रित संकल्पना नहीं होती।

 

मोहन भागवत ने कहा कि ‘हिन्दुत्व’ ऐसा शब्द है, जिसके अर्थ को पूजा से जोड़कर संकुचित किया गया है। संघ की भाषा में उस संकुचित अर्थ में उसका प्रयोग नहीं होता।

 

वह शब्द अपने देश की पहचान को, अध्यात्म आधारित उसकी परंपरा के सनातन सातत्य तथा समस्त मूल्य सम्पदा के साथ अभिव्यक्ति देने वाला शब्द है।

 

मोहन भागवत ने कहा, संघ मानता है कि ‘हिंदुत्व’ शब्द भारतवर्ष को अपना मानने वाले, उसकी संस्कृति के वैश्विक व सर्वकालिक मूल्यों को आचरण में उतारने वाले तथा यशस्वी रूप में ऐसा करके दिखाने वाली उसकी पूर्वज परम्परा का गौरव मन में रखने वाले सभी 130 करोड़ समाज बन्धुओं पर लागू होता है।

 

मोहन भागवत ने कहा कि ‘हिंदू’ शब्द के विस्मरण से हमको एकात्मता के सूत्र में पिरोकर देश व समाज से बांधने वाला बंधन ढीला होता है।

 

इसीलिए इस देश व समाज को तोड़ने की चाह रखने वाले, हमें आपस में लड़ाने वाले, इस शब्द को, जो सबको जोड़ता है, अपने तिरस्कार व टीका टिप्पणी का पहला लक्ष्य बनाते हैं।

 

उन्होंने कहा, हिन्दू किसी पंथ, सम्प्रदाय का नाम नहीं है, किसी एक प्रांत का अपना उपजाया हुआ शब्द नहीं है, किसी एक जाति की बपौती नहीं है, किसी एक भाषा का पुरस्कार करने वाला शब्द नहीं है।

 

समस्त राष्ट्र जीवन के सामाजिक, सांस्कृतिक, इसलिए उसके समस्त क्रियाकलापों को दिग्दर्शित करने वाले मूल्यों का व उनके व्यक्तिगत, पारिवारिक, व्यवसायिक और सामाजिक जीवन में अभिव्यक्ति का नाम ‘हिन्दू’ शब्द से निर्दिष्ट होता है।

 

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के सरसंघचालक मोहन भागवत ने विजयादशमी उत्सव के संबोधन में चीन को लेकर कड़ा संदेश दिया है।

 

उन्होंने कहा है कि भारत की प्रतिक्रिया से पहली बार चीन सहम और ठिठक गया। उसकी गलतफहमी दूर हो गई। हालांकि, मोहन भागवत ने भारत को अब और अधिक सतर्क रहने का सुझाव देते हुए सामरिक और आर्थिक रूप से चीन से ज्यादा मजबूत बनने पर जोर दिया।

 

मोहन भागवत ने वैश्विक महामारी में चीन की भूमिका भी संदिग्ध बताई। आरएसएस के सरसंघचालक मोहन भागवत ने नागपुर से संबोधन में कहा, चीन ने सामरिक बल के गर्व में हमारी सीमाओं का अतिक्रमण करने की कोशिश की।

 

भारत ही नहीं उसने ताइवान, वियतनाम, अमेरिका और जापान के साथ भी झगड़ा मोल लिया। इस बार भारत ने जो प्रतिक्रिया दी, उसके कारण वो सहम गया, उसे धक्का मिला। क्योंकि भारत तन कर खड़ा हो गया।

 

सेना ने वीरता का परिचय दिया, नागरिकों ने देशभक्ति का परिचय दिया। सामरिक और आर्थिक दोनों कारणों से वह ठिठक जाए, इतना धक्का तो उसे मिला। उसके चलते अब दुनिया के दूसरे देशों ने भी चीन को डांटना शुरू किया।

 

मोहन भागवत ने चीन से टकराव के बाद भारत को और अधिक सतर्क रहने की जरूरत बताई। मोहन भागवत ने कहा, हमको अधिक सजग रहने की जरूरत है। क्योंकि जो नहीं सोचा था उसने (चीन), ऐसी परिस्थिति खड़ी हो गई।

 

इस प्रतिक्रिया में वह (चीन) क्या करेगा, नहीं पता है। इसलिए इसका उपाय क्या है। सतत सावधानी, सजगता और तैयारी। मोहन भागवत ने चीन को रोकने के लिए भारत को सामरिक और आर्थिक के साथ अंतरराष्ट्रीय कूटनीति में उससे शक्तिशाली बनने पर जोर दिया।

 

मोहन भागवत ने पड़ोसी देशों के साथ संबंध और अधिक दुरुस्त करने पर जोर दिया।

 

उन्होंने कहा, श्रीलंका, बांग्लादेश, नेपाल ऐसे हमारे पड़ोसी देश, जो हमारे मित्र भी हैं और बहुत मात्रा में समान प्रकृति के देश हैं, उनके साथ हमें अपने सम्बन्धों को अधिक मित्रतापूर्ण बनाने में अपनी गति तीव्र करनी चाहिए।

 

मोहन भागवत ने चीन को कड़ा संदेश देते हुए कहा, हम सभी से मित्रता चाहते हैं। वह हमारा स्वभाव है।

 

परन्तु हमारी सद्भावना को दुर्बलता मानकर अपने बल के प्रदर्शन से कोई भारत को चाहे जैसा नचा ले, झुका ले, यह हो नहीं सकता, इतना तो अब तक ऐसा दुस्साहस करने वालों को समझ में आ जाना चाहिए। हम दुर्बल नहीं है। उनकी गलतफहमी दूर हो गई।