मानवाधिकार संगठनों का दावा- ‘डिटेंशन सेंटरों में हालात बेहद अमानवीय’

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असम के छह डिटेंशन सेंटरों में ऐसे 988 लोग रह रहे हैं जिनको विदेशी घोषित किया जा चुका है। वर्ष 2016 से अब तक इनमें से विभिन्न बीमारियों के चलते 28 लोगों की मौत हो चुकी है। असम के डिटेंशन सेंटरों में रहने वाले लोगों की मौत के मामले लगातार बढ़ रहे हैं।

डी डब्ल्यू हिन्दी पर छपी खबर के अनुसार, भारत में केंद्र सरकार ने संसद में स्वीकार किया है कि वर्ष 2016 से अब तक इनमें से विभिन्न बीमारियों के चलते 28 लोगों की मौत हो चुकी है।

मानवाधिकार संगठनों का दावा है कि डिटेंशन सेंटरों में हालात बेहद अमानवीय हैं और खाने-पीने व चिकित्सा की समुचित सुविधाएं नहीं हैं. लेकिन असम सरकार ने इन आरोपों का खंडन किया है।

इन मौतों पर विवाद तेज होने के बाद राज्य सरकार ने बीते महीने इनकी जांच के लिए एक विशेष समिति का गठन किया था। लेकिन समिति के गठन के बाद भी कम से कम दो लोगों की मौत हो चुकी है।

केंद्र सरकार ने पहली बार इन केंद्रों में मौत की बात स्वीकार की है। वैसे, इन डिटेंशन सेंटरों में रहने वालों की हालत पर पहले भी अक्सर सवाल उठते रहे हैं।

बीते महीने दो लोगों की मौत के बाद उनके परिजनों ने शव लेने से भी इंकार कर दिया था।

इन सेंटरों में उन लोगों को रखा जाता है जिनको विदेशी न्यायाधिकरणों की ओर से विदेशी घोषित किया जा चुका है। केंद्रीय गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने राज्यसभा में प्रश्नकाल के दौरान एक सवाल के जवाब में बताया कि असम के छह नजरबंदी शिविरों में 988 विदेशी नागरिकों को रखा गया है।

राय ने बताया, “असम सरकार से मिली 22 नवंबर, 2019 तक की जानकारी के मुताबिक, राज्य के छह डिटेंशन सेंटरों में 988 विदेशी लोग रह रहे है।

इन सेंटरों में मेडिकल समेत सभी बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध करवाई जा रही हैं.वहां रहने वालों को अखबार, टीवी, खेलकूद, सांस्कृतिक कार्यक्रम, लाइब्रेरी, योग, ध्यान आदि सुविधाएं दी जा रही हैं। साथ ही यहां नियमित तौर पर चिकित्सा शिविर लगाए जा रहे हैं।

लेकिन मुआवजे से संबधित एक पूरक सवाल पर मंत्री ने कहा कि गैरकानूनी ढंग से देश में आने वाले और रहने वालों के पकड़े जाने पर नजरबंदी के दौरान बीमारी से मौत होने पर मुआवजा या हर्जाना देने का कोई प्रावधान नहीं है।

केंद्र सरकार के दावे के बावजूद राज्य के छह डिटेंशन सेंटरों की हालत पर अक्सर सवाल उठते रहे हैं। वहां रहने वालों को आम कैदियों की तरह न तो काम करने का अधिकार है और न ही पैरोल समेत दूसरी सुविधाएं हासिल हैं।

असम में इस साल मार्च तक कुल 1.17 लाख लोगों को विदेशी घोषित किया जा चुका था। इस साल जुलाई में लोकसभा में एक सवाल के जवाब में केंद्रीय गृह राज्य मंत्री जी किशन रेड्डी ने बताया था कि 31 मार्च 2019 तक कुल 1,17,164 लोगों को न्यायाधिकरणों ने विदेशी घोषित किया था।

दस मई, 2018 को सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिया था कि डिटेंशन सेंटर में तीन साल से ज्यादा रहे लोगों को रिहा किया जाए। लेकिन इसके बावजूद कई लोग लंबे अरसे से वहां रह रहे हैं।

एनआरसी की अंतिम सूची जारी होने से पहले इन विदेशी न्यायाधिकरणों के कई फैसलों की वजह से असम में विवाद की स्थिति पैदा हुई थी। इसके साथ ही न्यायाधिकरणों की ओर से लोगों को विदेशी घोषित करने की प्रक्रिया पर भी सवाल उठे थे।

दरअसल, इस साल मई महीने में कारगिल युद्ध में शामिल रहे सेना के पूर्व अधिकारी मोहम्मद सनाउल्लाह को विदेशी घोषित कर उन्हें एक डिटेंशन सेंटर में भेज दिया गया था। हालांकि कुछ दिन बाद ही उनको रिहा कर दिया गया।

उनके परिवार ने विदेशी न्यायाधिकरण के फैसले के खिलाफ गुवाहाटी हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की थी.इसी तरह एक बुजुर्ग महिला को भी विदेशी घोषित कर ऐसे सेंटर में भेज दिया गया था। उसे उन्हें तीन साल हिरासत में रखने के बाद रिहा किया गया।

इस मामले में पुलिस ने स्वीकार किया था कि वह गलत पहचान की शिकार हुईं। दरअसल पुलिस ने मधुमाला दास की जगह 59 वर्षीय मधुबाला मंडल को पकड़ लिया था।

साभार- डी डब्ल्यू हिन्दी