इबोला की खोज करने वाले वैज्ञानिक ने रोग X ’की चेतावनी दी, COVID-19 की तुलना में अधिक घातक!

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वैश्विक स्तर पर साल 2020 कोविड-19 महामारी के लिए चर्चित रहा, लेकिन साल के बीतते-बीतते वैक्सीन के आने से महामारी की विदाई की उम्मीद बंधी।

जागरण डॉट कॉम पर छपी खबर के अनुसार, 2021 की शुरुआत को अभी एक सप्ताह भी नहीं बीता है कि एक और खतरनाक बीमारी ‘डिजीज एक्स’ ने दुनिया को डराना शुरू कर दिया है।

इबोला वायरस की खोज में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले प्रोफेसर जीन जैक्स मुयेम्बे तामफूम ने चेतावनी दी है कि आज हम ऐसी दुनिया में हैं, जहां रोज नए रोगाणु आ रहे हैं और ऐसी कोई बीमारी कोविड-19 से भी घातक हो सकती है।

यदि हम आज भी प्रकृति के खिलाफ खड़े रहे तो वह दिन दूर नहीं जब हमें इसका भारी नुकसान उठाना पड़ेगा।दुनिया के लिए बन सकता है खतराविश्व स्वास्थ्य संगठन का कहना है कि डिजीज एक्स, कहां जाकर रुकेगी अभी यह सिर्फ कल्पना है।

विशेषज्ञों का मानना है कि यदि यह अस्तित्व में आती है तो यह कोरोना महामारी से कई गुना अधिक खतरनाक होगी।उभर रहे हैं नए और घातक वायरसकरीब 45 साल पहले इबोला की खोज करने वाले वैज्ञानिक तामफूम ने चेतावनी दी है कि अफ्रीका के उष्ण कटिबंध वाले वर्षा वनों से नए और घातक वायरस उभर रहे हैं।

यहां तक की कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य में एक महिला में हैमरेजिक बुखार के लक्षण नजर आने के बाद नए जानलेवा रोगाणु की आशंका जताई गई है।

महिला की इबोला सहित कई बीमारियों की जांच की गई थी। हालांकि महिला को उनमें से एक भी बीमारी नहीं थी। इसके बाद उसकी बीमारी को लेकर डर बढ़ गया कि कहीं बीमारी का कारण डिजीज एक्स तो नहीं है।

यह नया रोगाणु कोरोना वायरस की तरह काफी तेजी से प्रसार कर सकता है, लेकिन इसकी मृत्यु दर इबोला की तरह 50 से 90 फीसद तक हो सकती है। इबोला जैसे लक्षण वाली यह बीमारी ठीक भी उसी तरह होती है।

प्रोफेसर तामफूम ने कई जोनोटिक बीमारियों को लेकर चेताया है। यह ऐसी बीमारियां हैं, जो जानवर से मानव में आकर खतरनाक हो सकती हैं।

कोविड-19 इन बीमारियों में से एक है। इसमें यलो फीवर अ‍ैर रेबीज भी शामिल है। उन्होंने कहा कि वायरस के लिए जानवर स्वाभाविक मेजबान होते हैं।

सार्स-सीओवी-2, कोविड-19 बीमारी का कारण है। माना जाता है कि यह चीन में चमगादड़ों से उत्पन्न हुआ है।

विशेषज्ञों ने बड़े पैमाने पर वनों की कटाई को जोनोटिक बीमारियों के प्रकोप के लिए जिम्मेदार ठहराया है।

किंशासा में स्थित नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ बायोमेडिकल रिसर्च के प्रमुख तामफूम हैं।

इसे अमेरिका के सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन औरडब्ल्यूएचओ का समर्थन है। इसकी प्रयोगशालाएं इबोला जैसी ज्ञात बीमारियों के नए प्रकोप के लिए दुनिया की शुरुआती चेतावनी प्रणाली हैं।

उन्होंने कहा कि एक रोगाणु यदि अफ्रीका से निकलता है तो उसे पूरी दुनिया में फैलने में वक्त लगेगा। ऐसे वायरस के बारे में जल्द पता लगाकर इससे लड़ने की नई रणनीति बनाई जा सकती है।