16 साल तक गैरकानूनी तरीके से दुबई में रहने वाला तेलंगाना का शख्स भारत लौटा!

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एक खाड़ी प्रवासी कार्यकर्ता नीला येलिया अपने परिवार के साथ पुनर्मिलन के लिए 16 साल के लंबे इंतजार के बाद दुबई से तेलंगाना के कामारेड्डी जिले में अपने पैतृक गाँव लौट आया। उनकी बेटी सुनंदा एक स्तनपान करने वाली बच्ची थी, जब वह 2004 में दुबई गई थी। वह अपनी मां राजव्वा की देखरेख में बड़ी हुई और 14 साल की उम्र में शादी कर ली और उसके एक साल का बेटा है।

 

जनजवार पर छपी खबर के अनुसार, पिछले 16 सालों से गैर क़ानूनी प्रवासी के रूप में दुबई में रह रहे 48 वर्षीय नीला येल्ला का भतीजा राजू कहता है, ‘चार सालों से हम उसे वापस लाने का प्रयास कर रहे हैं।’ देश छोड़ते समय तेलंगाना में बसे येल्ला के परिवार में उसकी मां भूमाव्वा, पत्नी राजव्वा और दुधमुई बेटी सुनंदा थी। ये सभी इतने साल येल्ला के बिना रहते आये हैं। उसकी बेटी सुनंदा की अब शादी हो चुकी है और वो 9 महीने की एक बेटी की मां भी बन चुकी है।

 

येल्ला की मौजूदगी न होने के चलते उसकी पत्नी नीला राजव्वा अपना घर चलाने के लिए घरेलू नौकरानी का काम करती है। उसके पास अपने पति को वापस बुलाने के संसाधन नहीं थे जबकि कुछ समय से उसका पति वापस लौटना चाह रहा था। आखिरी बार उनकी यह उम्मीद तब जगी थी जब येल्ला का भतीजा राजू दुबई में अपने लिए नौकरी हासिल करने में सफल रहा था।

 

पिछले 2 साल से शारजाह में काम कर रहे राजू ने वहां पहुंचते ही अपने चाचा की खोज चालू कर दी। राजू कहता है, ‘वो मुझे मिल गए लेकिन बहुत बुरे हाल में थे। वो पब्लिक पार्क में रह रहे थे और वहीं की बेन्चों में सोते थे और वहां आने वाले पाकिस्तानी या दूसरे लोग जो कुछ भी देते वो खा लेते थे।’

 

राजू आगे कहता है, ‘कुछ दिन वो खा लेते और बाकी दिन पानी पी कर ही रह लेते। उनकी बेटी की शादी के समय हमने वाणिज्य दूतावास से संपर्क किया था। लेकिन मेरे चाचा के पास अपनी पहचान साबित करने के कोई दस्तावेज़ नहीं थे।’

 

राजू कहता है कि मामले को आगे बढ़ाने के संसाधन उनके पास नहीं थे इसलिए उन्होंने बात वहीं ख़त्म कर दी। कोविड-19 के चलते इस साल के शुरू में राजू अपने घर भारत लौट आया और तय किया कि कभी लौट के नहीं जाएगा। ऐसा लगने लगा था कि उसके चाचा का दूर-दराज के एक देश में खो जाना जैसे तय था।

 

दुबई के सपने

 

यह 2004 का साल था जब नीला येल्ला कामरेड्ड़ी ज़िले के चिंतामणपल्ली गावं से दुबई के लिए वर्क-वीसा पर रवाना हुआ। अब यह जिला तेलंगाना का हिस्सा बन चुका है। कुछ समय के लिए उसने शारजाह में सरजा कम्भा भवन में मिस्त्री का काम किया। यह साफ़ नहीं है कि क्यों बिना अपना पासपोर्ट वापस लिए येल्ला ने नौकरी छोड़ दी। यहीं से एक गैर-क़ानूनी प्रवासी की उसकी ज़िंदगी की शुरुआत हुयी।

 

ऐसा लगता है कि अगले 16 सालोँ तक उसकी ज़िंदगी हिचकोले खाती रही और वो उस देश के अपने साथी कामगारों के साथ इधर-उधर भटकता रहा और अंत में शहर के बेघर,बेकार और दस्तावेज़ विहीन लोगों का हिस्सा बन गया।

 

फोन करने के पैसे ना होने के चलते वो कभी-कभी शारजाह में अपने परिचित की मदद से भारत में अपने पड़ोसी के फोन पर अपनी पत्नी से बात कर लेता था। कुछ साल तक फोन करने के दौरान येल्ला अपने परिवार से बार-बार कहता रहा कि उसे वापस भारत लाने की कोशिश वे लोग करें। एक उम्मीद राजू ही था। लेकिन उसे भी दो महीने पहले भारत लौटना पड़ा। लेकिन कोई दूसरा था जो येल्ला की मदद करने आने वाला था।

 

येल्ला को बचाने की जद्दोजहद

 

जैन सेवा मिशन से जुड़े स्वयंसेवक रूपेश मेहता कहते हैं, ‘मैं येल्ला से पहले-पहल तब मिला था जब कोविड महामारी के चलते हम सड़कों पर रह रहे लोगों के बीच खाने के पैकेट बाँट रहे थे। मैंने उन लोगों से बात की जिन्हे मुझे लगा मदद की ज़रुरत है और उन ज़रूरतमंदों की भी ये राय थी कि मैं सुनिश्चित करूं कि येल्ला अपने घर वापस अपने परिवार के बीच पहुँच जाये।’

 

येल्ला को आपातकालीन सर्टिफ़िकेट दिलाने और अंत में उसकी वतन वापसी करवाने के लिए रूपेश ने अन्य नागरिक समाज संगठनों से मदद मांगी। आपातकालीन सर्टिफ़िकेट (एक तरफ की यात्रा करने संबंधी दस्तावेज़ जिसे व्हाइट पासपोर्ट भी कहा जाता है) तभी जारी हो सकता था अगर येल्ला 16 साल पहले यूएई में प्रवेश करते वक़्त उसके पुराने पासपोर्ट में दर्ज़ किया गया ब्यौरा उपलब्ध करा सकता था।

 

अपनी राष्ट्रीयता साबित करने के लिए येल्ला के पास वोटर पहचान-पत्र और राशन कार्ड के अलावा दूसरा कोई दस्तावेज़ नहीं था। हैदराबाद में जारी कोविड-19 से जुडी पाबंदियों के चलते येल्ला के पुराने पासपोर्ट का ब्यौरा ढूंढ पाना ज़्यादा मुश्किल हो गया था।

 

येल्ला की पत्नी की तरफ से हैदराबाद स्थित क्षेत्रीय पासपोर्ट अधिकारी को एमिग्रेंट्स वेलफेयर फोरम के अध्यक्ष और प्रवासियों के अधिकारों से जुड़े कार्यकर्ता भीम रेड्डी ने एक ई-मेल भेजा। इसमें लिखा था-“रूपेश मेहता ने येल्ला के परिवार के सदस्यों से संपर्क करने और सबूत हासिल करने में सहयोग करने के लिए तेलंगाना स्थित प्रवासी मित्र लेबर यूनियन की सहायता मांगी। प्रवासी मित्र ऑर्गेनाइजेशन के प्रतिनिधि येल्ला की पत्नी नीला रजव्वा को सोमवार 27 जुलाई को हैदराबाद स्थित पासपोर्ट ऑफिस लाए। उसने क्षेत्रीय पासपोर्ट अधिकारी से व्यक्तिगत रूप में मिलने की कोशिश की लेकिन कोरोना के चलते यह संभव नहीं हो सका।’

 

येल्ला की पत्नी रजव्वा ने एक अधिकारियों को एक पत्र देते हुए प्रार्थना की कि वो येल्ला के पासपोर्ट का ब्यौरा ढ़ूँढ़ कर जारी करें ताकि दुबई स्थित वाणिज्य दूतावास आपातकालीन सर्टिफ़िकेट जारी कर सके। लेकिन उसे कोई जवाब नहीं मिला।

 

जब लीड ने येल्ला के भतीजे राजू के माध्यम से उसके परिवार और भीम रेड्डी से बात की थी तब येल्ला के लिए स्वदेश लौट पाना मुश्किल लग रहा था। फोन पर भीम रेड्डी ने कहा, ’18 अगस्त अंतिम तिथि है। समय-सीमा से ज़्यादा समय तक रह रहे लोगों को यूएई द्वारा दी गई माफी 18 अगस्त 2020 को ख़त्म हो जाएगी। अगर इसके पहले हमें आपातकालीन सर्टिफ़िकेट जारी नहीं किया जाता तो येल्ला को या तो जेल जाना पडेगा या फिर हर्ज़ाना भरना होगा।’

 

अब जबकि केवल 13 दिन बचे थे, येल्ला का भतीजा राजू ना-उम्मीद होता जा रहा था। निराश और हताश राजू बोला, ‘हम उसके पासपोर्ट के थोड़े बहुत ब्यौरे ही हासिल करने की कोशिश कर रहे हैं। हमारे पास कुछ भी नहीं है। ना तो पासपोर्ट की कॉपी और ना ही कुछ अन्य। हमें चक्कर काटते बहुत समय हो गया है।’

 

उम्मीद की एक किरण

 

दुबई में रह रहे रूपेश मेहता से संपर्क करने पर एक सकारात्मक खबर मिली। रूपेश ने द लीड से कहा, ‘अच्छी खबर यह है कि क्षेत्रीय पासपोर्ट ऑफिस को उसके पासपोर्ट का ब्यौरा मिल गया है और आज (5 अगस्त) सुबह दुबई स्थित वाणिज्य दूतावास को भेज भी दिया गया है। इसलिए दुबई स्थित वाणिज्य दूतावास उसके नाम आपातकालीन सर्टिफ़िकेटजरी कर सकता है ताकि वो देश से बाहर जा सके।’