मुज्तबा हुसैन के निधन से साहित्य जगत को धक्का, पद्मश्री लौटाकर किया था मोदी सरकार का विरोध

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मशहूर उर्दू लेखक, हास्य और व्यंग्य रचनाकार मुज्तबा हुसैन का लंबी बीमारी के बाद बुधवार को दिल का दौरा पड़ने से 84 वर्ष की उम्र में निधन हो गया। पारिवारिक सूत्रों के अनुसार, उन्होंने हैदराबाद के रेड हिल्स इलाके में अपने निवास पर अंतिम सांस ली। बुढ़ापे से संबंधित समस्याओं के कारण वह पिछले कुछ साल से अस्वस्थ चल रहे थे।

उर्दू के ‘मार्क ट्वेन’ के रूप में विख्यात मुज्तबा हुसैन अपने समय के सबसे प्रिय उर्दू हास्यकार रहे। उन्हें 2007 में देश के चौथे सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार पद्मश्री से सम्मानित किया गया था। उनके निधन को भारतीय उप-महाद्वीप में उर्दू साहित्य के लिए एक बड़ी क्षति माना जा रहा है।

मुज्तबा हुसैन प्रसिद्ध लेखक इब्राहिम जलीस के भाई थे, जो पाकिस्तान चले गए थे। मुज्तबा हुसैन ने पिछले साल दिसंबर में उस समय चर्चा में आए थे, जब उन्होंने अपना पद्मश्री पुरस्कार लौटाने का ऐलान किया था। उन्होंने कथित तौर पर “मोदी सरकार द्वारा देश में डर और नफरत का माहौल पैदा किए जाने” के विरोध में यह फैसला लिया था।

उन्होंने अपने साहित्यिक जीवन की शुरुआत अपनी रचना ‘सियासत’ से की, जो हैदराबाद से प्रकाशित एक प्रमुख उर्दू दैनिक अखबार में छपती थी। पाठकों को इस अखबार में उनके संडे के कॉलम का बेसब्री से इंतजार रहता था। कहा जाता है कि मुज्तबा हुसैन की किताबें पढ़ने के लिए कई लोगों ने एक जमाने में उर्दू सीखी।

उन्होंने अपने जीवन काल में कई पुस्तकें और यात्रावृत्तांत लिखे, जिनमें ‘जापान चलो जापान’ उर्दू साहित्य में उनके सबसे बड़े योगदान में से एक माना जाता है, क्योंकि इसने जापान के बारे में एक ऐसे समय में दुर्लभ और हास्यप्रद बातें बताईं, जब उस देश की यात्रा कम ही लोग किया करते थे।उनके जीवनकाल में उन पर भारत के विभिन्न विद्वानों द्वारा कम से कम 12 शोध ग्रंथ लिखे गए। उनकी रचनाओं का उड़िया, कन्नड़, हिंदी, अंग्रेजी, रूसी और जापानी भाषाओं में अनुवाद होता रहा है।