सऊदी अरब को हथियार बेचने का मकसद ईरान से लड़वाना है!

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ट्रम्प के राष्ट्रपति काल में अमरीका ने फ़ार्स की खाड़ी और उसके दक्षिणवर्ती देशों में ख़ास तौर पर सऊदी अरब की ओर विशेष रूप से ध्यान दिया और सऊदी शासन के साथ उसने हथियारों का बहुत बड़ा समझौता किया है। वॉशिंग्टन ने इसका बहाना अमरीकी हितों की रक्षा और ईरान से मुक़ाबला बताया है।

इसी परिप्रेक्ष्य में अमरीकी विदेश मंत्री माइक पोम्पियो ने शुक्रवार को इस्लामी गणतंत्र ईरान के ख़िलाफ़ निराधार दावे दोहराते हुए कहा कि तेहरान सरकार वॉशिंग्टन और उसके घटकों के लिए क्षेत्र में वास्तविक ख़तरा है जिससे निपटने के लिए हर काम अंजाम दिया जा रहा है।

पार्स टुडे डॉट कॉम के अनुसार, पोम्पियो ने अमरीकी प्रतिनिधि सभा की अध्यक्ष नेन्सी पेलोसी के सऊदी अरब को हथियार बेचने के विरोध पर आधारित बयान की प्रतिक्रिया में कहाः “ट्रम्प ने साफ़ तौर पर कहा है।

इस्लामी गणतंत्र एक वास्तविक ख़तरा है और सऊदी भी उन्हें पीछे ढकेलने में हमारे सहभागी हैं। हमसे जो होगा उनके साथ भागीदारी में अंजाम देंगे।”

इस तरह ट्रम्प सरकार सऊदी शासन को हथियार बेचने के सौदे को जारी रखने का औचित्य पेश करने की कोशिश कर रही। इन हथियारों का बड़ा भाग यमन की पीड़ित जनता के ख़िलाफ़ सऊदी गठबंधन द्वारा इस्तेमाल हो रहा है।

ट्रम्प ने सऊदी अरब और यूएई को हथियारों की बिक्री पर रोक लगाने से संबंधित कॉन्ग्रेस के प्रस्ताव को वीटो कर वॉशिंग्टन की क्षेत्रीय नीति में इन देशों के रोल की पुष्टि कर दी और साथ ही अमरीकी कॉन्ग्रेस के विशेष रूप से डेमोक्रेट सदस्यों को यह बात याद दिलायी कि हथियार बेचने जैसे विषयों के बारे में फ़ैसला लेने की ज़िम्मेदारी राष्ट्रपति पर है और इस संदर्भ में कॉन्ग्रेस कोई हस्तक्षेप न करे।

इस बीच अमरीका ने ईरान के ख़िलाफ़ अत्यधिक दबाव की नीति के तहत न सिर्फ़ तेहरान के ख़िलाफ़ अपनी पाबंदियां अभूतपूर्व स्तर पर बढ़ा दी हैं बल्कि ईरान के कथित ख़तरे से निपटने के बहाने फ़ार्स की खाड़ी और उसके आस पास के जलक्षेत्र में अशांति व अस्थिरता बढ़ने की भूमि प्रशस्त की है।

अब ट्रम्प सरकार फ़ार्स की खाड़ी के ताज़ा तनाव में किसी तरह सऊदी अरब को घसीटना चाहती है। यह ऐसी हालत में है कि तेहरान फ़ार्स खाड़ी के तटवर्ती देशों ख़ास तौर पर सऊदी अरब के साथ तनाव ख़त्म होने पर बारंबार बल देता आ रहा है। कुछ दिन पहले विदेश मंत्री मोहम्मद जवाद ज़रीफ़ की सऊदी अरब के साथ अनाक्रमण संधि की पेशकश, इसी दृष्टि से समीक्षा योग्य है।